Tuesday, October 02, 2012

मेरा घर..


मकान खोज लि‍या है..
बस अब 
उसे घर बनाने की तैयारी है..
एक भी पल के लि‍ए अब दि‍माग
शैतान का घर नहीं बनता
क्‍योंकि‍ नए मकान में करने को बहुत कुछ है..
कभी रंग...कभी रौगन
बस यही सब सोचते हुए समय बीत रहा है..
कभी समय पांव रोक देते हैं
तो कभी जेब हाथ..
पर वो मकान मेरा घर बन ही जाएगा..
सच है कि 
भौति‍कता ने सामानों की लि‍स्‍ट बड़ी कर दी है..
वरना तो एक छत, चार दीवारी और दो हम
ही काफी थे.. उनके मकान को अपना घर बनाने के लि‍ए
शायद ही उस सोफे पर बैठकर कभी टीवी देखने का वक्‍त मि‍ले
पर बैठका सुंदर होना जरूरी है..
उस ईजी चेयर पर शायद ही कभी चाय की चुस्‍कि‍यां ले पाऊं
पर वो भी एक कोने में सजा दी है...
जि‍तनी कला थी मुझमें सब इस कमरे को
सजाने में उड़ेल दी है..
पर वो कोना सबसे सुंदर है 
जहां तुम्‍हारे दि‍ए बरसो पुराने फूल सजा रखे हैं..
वो सूखे फूल..
जि‍नकी खुश्‍बू आज भी उतनी ही मीठी है
जि‍तनी की उस वक्‍त....
जब तुमने मेरे साथ घर बसाने की बात की थी..।।  

19 comments:

Arvind Mishra said...

भीनी भावनाओं की भावपूर्ण प्रस्तुति!

Dr. sandhya tiwari said...

bahut saare rang se saja hai aapka ghar aur aapke ghar me khushbu phaili rahe hamesha ..........

Dr. sandhya tiwari said...

bahut saare rangon se saja aur hamesha khushbu se bhara rahe aapka ghrar

Dr. sandhya tiwari said...

bahut saare rango se saja rahe aapka ghar

virendra sharma said...

जहां तुम्हारे दिए बरसो (बरसों )पुराने फूल सजा रखें हैं ........बेहतरीन बिम्बात्मक प्रस्तुति आधुनिक जीवन की औपचारिकताओं का पेट भरते जाने की ....

वाणी गीत said...

मकान में सुविधाएँ जुटाने के लिए इतनी भागदौड़ कि उनका उपभोग करने का समय ही नहीं बचता !
मकान और घर में स्मृतियों को उकेरा !

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

घर के लिए भौतिक सामानो की ज़रूरत नहीं ...मन की भावनाएं होनी चाहिए .... बहुत सुंदर

mridula pradhan said...

bahot sunder bhaw.....

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 04-10 -2012 को यहाँ भी है

.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....बड़ापन कोठियों में , बड़प्पन सड़कों पर । .

जयकृष्ण राय तुषार said...

बहुत अच्छी कविता |

केवल राम said...

संवेदनाओं को बेहतर शब्द दिए हैं आपने ...!

Asha Lata Saxena said...

एक भावपूर्ण रचना |
आशा

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत ही बढ़िया

आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा।


सादर

प्रतिभा सक्सेना said...

कलाकारी या कौशल से नहीं ,जहाँ अपनत्व और स्नेह की सुवास हो वहीं मन शान्ति और सुख पाता है !

अनुभूति said...

मकान और घर का अंतर कितना बढ़ गया है इस भौतिकवादी युग में...बेहद सुन्दर भाव पूर्ण अभिव्यक्ति ...

Tushar Banerjee said...

अपने घर में थोड़ी सी जगह हमें भी दे दीजिएगा. तुषार

नादिर खान said...

वो सूखे फूल..
जि‍नकी खुश्‍बू आज भी उतनी ही मीठी है
जि‍तनी की उस वक्‍त....
जब तुमने मेरे साथ घर बसाने की बात की थी..।।

बहुत सुंदर चित्र खींचा है अपने ।

Aditi Poonam said...

मधुर स्मृतियों से सजे झरोखे भी है घर में -बहुत सुंदर

Mamta Bajpai said...

आखरी पंग्तियाँ ..खल गई ..मार्मिक रचना दिल तक पहुची

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