Thursday, February 02, 2017

मैं सलमान खान नहीं बनना चाहती, तुम जितना चाहे हंस लो

सबसे पहले, भाई जान आप मुझे बहुत पसंद हो। इतने अधिक कि जिस बिग बॉस को लोग समय की बर्बादी कहते हैं मैंने उसका एक भी एपिसोड मिस नहीं किया। सिर्फ आपके लिए। कभी 15-20 मिनट का छूट जाता तो वूट पर देखा है लेकिन विडंबना देखिए अब राह चलते जब लोग मुझ पर हंसते हैं तो मुझे सिर्फ आप याद आते हैं।

                                          शुरू से बताती हूं।

एक साल पहले पत्रकारिता जैसे प्रफेशन में होने के बावजूद किसी तरह कार खरीदी। सोचा यह था कि कार चलाने आ गई तो कहीं आने-जाने के लिए किसी का मुंह नहीं देखना होगा। ड्राइविंग क्लास ज्वाइन की लेकिन अपनी कार में बैठने की हिम्मत नहीं जुटा सकी। पति देव रोज़ बोलते आज ट्राई करो लेकिन मेरे पास हर बार एक बहाने होता। कभी बहाना होता कि तुम्हारे साथ की सीट पर बैठने का सुख ही कुछ और है, कभी साथ वक्त बिताना तो कभी यह कहकर टाल देती थी कि एक ही घर से दो-दो गाड़ियां सड़क पर उतरेंगी। पल्यूशन भी बढ़ेगा और जाम भी। हर रोज़ बहाना।

फिर करीब दो महीने पहले उन्होंने सिर्फ इतना कहा, भूमिका एक काम शुरू किया था तुमने, बीच में ही छोड़ दिया। मेरे हारने की हताशा उनके चेहरे पर थी। शनिवार का दिन था, तय किया कि कल चाहे जो हो खुद ही ड्राइव करके जाउंगी। आइडिया शेयर किया तो उन्होंने कहा, चलो। मैं आगे-आगे चलूंगा और तुम पीछे। इस तरह पहले दिन मैं खुद ड्राइव करके ऑफिस पहुंची। लौटते वक्त अकेले बिना मार्गदर्शन के घर आयी। जो खुशी थी, वो सिर्फ मैं ही महसूस कर सकती थी। एक बहुत बड़ा पत्थर धकेल लिया था मैंने।

उसके बाद से रोज जाने लगी। ऑफिस पहुंचती तो एक तय समय पर फोन आता। ठीक से पहुंच गई न? और मैं हर सड़क, हर चौराहे और हर उस गाड़ी की डिटेल शेयर करती जो मेरे पास से गुजरती। किस जगह पर पहुंचकर कौन सा गियर लिया, कब स्पीड कम कर दी यहां तक कि रेड लाइट पर कितने देर रुकी यह भी। आप समझ सकते हैं। पूरा हिसाब-किताब LKG के उस बच्चे वाला जिसने अभी-अभी A से  apple सिखा हो और हर रोज कुछ नए शब्द जान-परख रहा हो।

अभी तीन-चार दिन पहले एक्सीडेंट हो गया। 20 की स्पीड वाली मेरी छोटी ऑल्टो को करीब 80-100 की स्पीड वाली एस्टीम ने ठोंक दिया। मुंह फूटा। पसलियों में चोट लगी। किसी तरह ऑफिस पहुंची। घर फोन किया और कहा गाड़ी ठुक गई है। अब? जवाब आया कोई बात नहीं बन जाएगी। होता रहता है ये सब। तुम ठीक हो न...? 'ठीक हो न' दवा होती है, उसी वक्त मालूम चला लेकिन डर बैठ गया था। किसी तरह उस दिन ऑफिस से घर आई। अगली सुबह डर के मारे कैब से आने का फैसला कर चुकी थी लेकिन मुझसे कहा गया कि आज डर गई तो कभी भी डर से बाहर नहीं आ पाओगी, बस संभलकर जाना। फिर खुद ही ड्राइव करके गई। कई लोगों ने टोका भी कि कल ही लड़ी थी तो आज नहीं आना था लेकिन उन्हें समझा नहीं सकती थी कि मैंने किसी और के भरोसे को सच किया है।

सड़क पर रोज कुछ न कुछ होता है। महिला चालकों को लोग हेय समझते हैं और ऐसे में मेरे जौसे नौसिखिए को तो...जो 40-50 के ऊपर बढ़ती ही नहीं है। आज घर आते वक्त एक मोटर साइकिल वाले ने पलटकर देखा और एक ऐसी हंसी दी कि दिल किया रौंद दूं। दरअसल, वह मेरे पीछे था लेकिन ओवरटेक करके आगे आया, मुझ पर हंसा और निकल गया। मालूम चल रहा था कि उसे मेरी कछुए की चाल पर हंसना आया लेकिन मुझे इसमें कोई हर्ज नहीं लगता।

जिस दिन स्टेयरिंग संभली थी, कसम खायी थी कि मेरी वजह से किसी को चोट नहीं आनी चाहिए। कार को मैकेनिक के पास भेजकर ठीक करा लेंगे, लेकिन इंसान का मैकेनिक तो ऊपर है न। वहां जाकर कोई आएगा थोड़े। दिक्कत यह है कि सल्लू भाई ने तेज स्पीड और नशे में लोगों को कुचल दिया। जो कुचले उनका सबकुछ तबाह हो गया, पर लोगों ने उन्हें देखकर कभी ऐसी हंसी नहीं होगी लेकिन एक इंसान जो सीख रहा है,  इस सोच के साथ की टशन के चक्कर में किसी की जान नहीं लेगा...आपको उस पर बड़ा हंसी आ रही है।

...तो भाई साब जितना चाहे हंस लो क्योंकि न तो मैं सलमान खान हूं जो मारकर भी सजा नहीं पाउंगी और मैं अब भी ह्यूमन ही हूं...सो किसी को चोट लगेगी तो खुद भी दर्द महसूस करूंगी। इसलिए आप हंसते रहिए लेकिन हमसे न हो पाएगा, उन जैसा बनना....

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