पीजी भी बड़ी मज़ेदार जगह है...जहां हम सात लड़कियां एक साथ रहते हैं...कुछ मौलिक समानताओं के अलावा हम सभी एक-दूसरे से बिल्कुल अलग हैं....हमारे खाने-पीने से लेकर उठने-बैठने, सोने-पढ़ने, नहाने-धोने, बात करने-काम करने, किसी भी चीज़ में कोई समानता नहीं है...पर फिर भी अब हम सभी को एक-दूसरे की आदत हो गई है...घर आकर कब कौन खाना बनाएगा , कब कौन सा चैनल चलेगा, कब कौन बात करेगा....लगभग सबकुछ तय है हमारे बीच...
शाम को आॅफिस से लौटकर एक-दूसरे को देखना काफी सुकून देता है...सबके आॅफिस की दिक्कतें बांटी जाती हैं और जितना ज़्यादा हिंसात्मक उपाय बता सकें, हम एक-दूसरे को बताते हैं...दरअसल ये हमारे दिनभर की थकान को निकाल देता है...कुछ नियम भी हैं...मसलन रमन भल्ला का शो ये है मोहब्बतें आ रहा है तो शोर नहीं करना है...सुबह सबको फ्रेश होने और नहाने के लिए 15 मिनट का ही टाइम मिलेगा...जिसे ज़्यादा वक्त लगता हो वो सबसे सुबह उठे...और न जाने कितनी बातें...बहुत लड़ाइयां होती हैं...मुझे मेरा सामान और बिस्तर गंदा मिलता है तो मेरा चीखना शुरू हो जाता है..ऐसी ही किसी का दूध, किसी की सब्जी, किसी का आटा चोरी हो तो उसका मुंह सिकुड़ जाता है...
पर ये सब अब अच्छा लगने लगा है...इस ढेर सारी बकवास बातों में कई बार कुछ अच्छा और नया भी सुनने को मिलता है...कुछ दिन पहले ही ये पता चला की मोर अपनी पूरी जिंन्दगी में केवल तब-तब ही रोता है जब-जब वो अपना पैर देखता है...क्योंकि उसके पैर बहुत भद्दे होते हैं....लेकिन उसके पैर हमेशा से ऐसे नहीं थे. मैना, जिसके पैर पीले होते हैं दरअसल वो मोर के असली पैर हैं...एकबार मैना ने मोर से पैर उधार मांगे और अपने पैर उसे दे दिए...फिर कभी लौटाए ही नहीं...इसलिए मोर अपनी मूर्खता और अपने गंदे पैरों को देखकर रोता है...मोर से जुड़ी एक और दिलचस्प बात है पर वो फिर कभी....
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