पूर्वांचल में एक कहावत है, माई मरे मौसी जियावे.
मतलब जिसकी मां मर गई हो, उसकी मौसी उसके लिए यशोदा मइया बन जाती है.
पर आज मदर्स डे के मौके पर यूं ही बुआ से बात
करते-करते बॉलीवुड की ऐसी ही एक मां और मौसी का जिक्र सामने आ गया. बॉलीवुड की एक
ऐसी मां, जिसके बारे में बहुत कम लोग ही जानते होंगे. हालांकि मौसी तो खासा
लोकप्रिय हैं लेकिन इसे उनके अभिनय का कमाल कहें या फिर हमारी असंवेदनशीलता की
उनका असली नाम बहुत कम ही लोगों को मालूम होगा.
लीला चिटणीस, अपने वक्त से दशकों आगे की
सोच रखने वाली महिला थीं. आप अंदाज़ा लगाइए 1909 में पैदा हुई एक लड़की, जिसका पहला
पति बेवफ़ा निकल जाए, बीवी को छोड़कर बाहर किसी और औरत से संबंध रखे, तो...उस
समय में औरतों के लिए कहा जाता था की वो पति के घर डोली में जाती हैं और अर्थी
पर बाहर आती हैं..लेकिन लीला ने पति की बेवफ़ाई सहने के बजाय तलाक़ लेना पसंद किया.
दुर्भाग्य था की दूसरा पति भी वैसा ही निकला. लीला ने तीसरी शादी की और उसके
बाद ज़िन्दगीभर अपने बच्चों की ख़ातिर कैमरे के सामने डटी रहीं.
एक बहुत ही ज़रूरी बात, उस समय में अभिनय
खलीहरों और अवारा लोगों का पेशा माना जाता था. जब लीला ने अभिनय शुरू किया तो,
बकायदा टाइम्स ऑफ इंडिया में इश्तिहार दिया गया की, इंडस्ट्री की पहली पढ़ी-लिखी,
बी.ए. पास अभिनेत्री. खूबसूरती के मामले में भी उनका कोई सानी नहीं था. जिस लक्स
साबुन को हम हीरोइनों के चेहरे से पहचानते हैं और जिसका विज्ञापन पाना हर हीरेइन
का सपना होता है, उसकी पहली अंबेसडर लीला ही थीं.
1941 में पहली बार वो इस ब्रांड
का चेहरा बनीं. चार बच्चों की मां, 30 से ज्यादा की उम्र और बिना किसी बोटोक्स
ट्रीटमेंट के वो नौजवानों के सपनों की रानी बन चुकी थीं. देविका रानी तब तक पूरी
तरह स्थापित हो चुकी थीं लेकिन लीला ने आते ही उनकी कुर्सी को चुनौती दे दी.
धुंआधार उनकी पहली फिल्म रही और उन्होंने अभिनय को लेकर कई प्रयोग किए. वो
जंटलमेन डाकू में डाकू भी बनीं. उसके बाद
उन्होंने मां के किरदार निभाने शुरू किए. उनकी लोकप्रियता का अंदाज़ा लगाइए
की 2003 में जब उनका निधन हुआ तो टाइम
मैगज़ीन ने उन्हें मदर्स ऑफ मदर कहकर श्रद्धांजलि दी. उन्होंने देवानंद, दीलिप
कुमार और राजकपूर की मां की भूमिका निभाई.
लेकिन जिन बच्चों के लिए उन्होंने जिन्दगी
का एक बड़ा हिस्सा मेक-अप करने और उतारने में बिता दिया, उनकी आखिरी घड़ी में
उनका कोई बच्चा उनके घावों पर मरहम लगाने के लिए भी मौजूद नहीं था. न अपनी औलाद
पहुंची और न ही सिनेमाई...
और अब मौसी...
मौसी से एक ख़ास लगाव है...पढ़ने के बाद पता
चला की वो गाज़ीपुर की थीं. वही गाज़ीपुर जहां बचपन बीता..दरअसल, बसंती की मौसी का
असली नाम लीला मिश्रा था.
बचपन का शौक़ कब जुनून बन गया और उसके बाद करियर...ये
किसी को पता ही नहीं चला. पहली फिल्म गंगावतरण रही. एक अच्छी अभिनेत्री होने
के साथ ही मौसी को लोग उनके बेबाकपन के लिए भी जानते थे और डरते भी थे.
आज मदर्स डे पर बॉलीवुड की इस मां और मौसी को याद करते हुए..
साभार- बॉम्बे टॉकी
2 comments:
Great Power-puff girl....itna acha likhti ho ki no words for you....
Great Power-puff girl...itna acha likhti ho...no words for praise....
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