शाहरूख खान की बहुत बड़ी फैन नहीं हूं लेकिन स्वदेश उन कुछएक फिल्मों में से है जिसे देखकर कुछ घण्टों तक सोचने को मजबूर हो जाती हूं। एक बेहद आम विषय पर बनी फिल्म, जिसमें बहुत सी नई बाते हैं। जैसे; भारतीय संस्कृति के सम्मान की बात की गई है लेकिन दूसरों की संस्कृति पर बिना कीचड़ उछाले, जाति-पाति के विषय पर भी एक नई सोच दिखाई गई है। लेकिन ये एक सीन ऐसा है जिसे हर दूसरे दिन यू ट्यूब पर डाउनलोड करके देखती हूं। एक बच्चा जो दोस्तों के साथ खेलने और पढ़ने की उम्र में पानी बेच रहा है, 25 पैसे का एक ग्लास.. खुद की सांस उखड़ी जा रही है लेकिन फिर भी पानी बेच रहा है। पांच रूपए का सिक्का मिल जाने पर जिसका हिसाब गड़बड हो जाता है....कितना बेबस है वो बच्चा और कितने बेबस होंगे उसके मां-बाप, अपनी गरीबी से।
भले ही ये एक फिल्म का सीन भर है लेकिन खोजिए और सोचिए तो असलियत यही है। ब्लॉग बनाया था, अपनी बातों को आपके सामने रखने के लिए और आपके मतों को जानने के लिए, इसीलिए इस सीन को भी शेयर कर रही हूं। इसे देखकर आपके मन में जो पहला ख्याल आए, बताएं।
भले ही ये एक फिल्म का सीन भर है लेकिन खोजिए और सोचिए तो असलियत यही है। ब्लॉग बनाया था, अपनी बातों को आपके सामने रखने के लिए और आपके मतों को जानने के लिए, इसीलिए इस सीन को भी शेयर कर रही हूं। इसे देखकर आपके मन में जो पहला ख्याल आए, बताएं।
3 comments:
वीडियो देखना थोड़ा मुश्किल है अभी। लेकिन बातें चिन्ताजनक हैं।
isey filmaane vaale naayak ke vyaktigat jeevan par is drishya ya is yatharth ka koi asar nahi. hai na ajeeb.....
its strange but true....kitna ajeeb hai na... hum 20 hazar ki naukri ek khoobsurat bb aur apne bachcho ke education tak sochte hain... lekin.... shayad un zindagiyon ke baare mein hum kabhi nahi sochte.... jo sirf do joon ki roti tak simti hui hai...
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