Friday, August 12, 2011

कब तक आजाद होते रहेगें हम?


बहुत दिनों बाद आज बाहर निकलना हुआ और समझदारी दिखाते हुए आईटीओ जाने के लिए कोई और विकल्प न चुनकर मैट्रो से ही जाना तय किया। मैट्रो स्टेशन के बाहर महिलाओं और पुरूषों की दो लम्बी... कतारें लगी हुई थीं। पुरूष कतार कुछ ज्यादा ही दूर तक थी और इसें देखकर भारत में लिंगानुपात की विषमता साफ नजर आ रही थी। धीरे-धीरे रेंगते हुए मेरा नम्बर भी आ ही गया। बाकी दिनों की अपेक्षा चैकिंग करने वाली महिला कुछ ज्यादा ही अलर्ट थी, सिर से लेकर पैर तक अच्छी तरह चैकिंग करने के बाद ही उसने मुझे पास  किया। कुल मिलाकर इतना तो स्पष्ट था कि आज वाकई चैकिंग ही हो रही है ना की रोज जैसा मजाक। लेकिन तभी छठी इन्द्रीय के तार घनघना उठे। कहीं कोई बम-वम वो नहीं फट गया न...! ऐसी चौकसी देखकर हर देलहाइट और मुम्बईया यही अनुमान लगाता है, क्योंकि इस देश में चैकिंग होती ही उस वक्त है। फिर मैट्रो की आवाजाही सामान्य देख, इस बात का सन्तोष हुआ की सबकुछ ठीक-ठाक है लेकिन फि‍र इतनी तैनाती क्यों है?
याद आया की अगस्त माह है और 15 अगस्त के लिए ही ये सारा बन्दोबस्त हो रहा है। इस वर्ष 64 साल हो जाएंगे हमें आजाद हुए। लेकिन तभी विरोधाभास हावी हो गया की फिर क्यों आये दिन आजादी की दूसरी-तीसरी लड़ाई की बात कही जा रही है, क्यों जनता का आह्वान किया जा रहा है कि वो इस संघर्ष का हिस्सा बने और देश को आजाद कराए। क्या 64 साल साल पहले मिली आजादी महज एक धेखा थी? और अगर नहीं तो क्यों जे पी के आन्दोलन को दूसरी आजादी का संघर्ष कहा गया और क्यों इसके उपरान्त सन्1977 में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में कांग्रेस की ऐतिहासिक हार को भी सत्ता हस्तान्तरण से कहीं ज्यादा आजादी से जोड़कर पेश किया गया? और अब क्यों एक बार फि‍र हम आजाद होने को मचल रहे हैं? क्या हम वाकई कभी आजाद हुए ही नहीं? और अगर नहीं तो ये जश्न किसके लिए? क्या बस इसलिए की सत्ता गोरे हाथों से निकलकर काले हाथों में आ गई। क्योंकि वास्तविकता में इसके अलावा कभी कुछ नहीं बदला। अत्याचार और अनाचार जस के तस हैं, शायद कुछ ज्यादा ही और अगर कुछ बदला है तो बस उसका प्रारूप।
वर्तमान में आजादी की दूसरी लड़ाई के लिए तैयार हो रही है और पिछले कुछ दिनों से अन्ना और उनकी टीम लोगों के घर जा-जाकर उन्हें इस आजादी की लड़ाई में सम्मिलित होने का न्यौता दे रही हैं और अब तक के सर्वे यही कहते हैं कि आजादी की इस लड़ाई में लगभग पूरा देश अन्ना के साथ खड़ा है खासतौर पर युवा। जो अब भ्रष्टाचार की गुलामी को और सहन नहीं करना चाहते। आज टीवी से लेकर अखबार तक और फोन से लेकर वेब तक हर ओर इसी स्वतंत्रता संग्राम की गूंज है लेकिन क्या ये संग्राम आखिरी होगा? क्या इसके बाद हम पूर्णतः स्वतंत्र हो जाएंगे? शायद हो जाएं लेकिन क्या कोई आश्वासन है की हम फिर गुलाम नहीं होगें? इस बात की गारंटी तो स्वयं अन्ना और उनके सहयोगी भी नहीं दे सकते, वो ही क्या कोई नहीं दे सकता। इस बात की गारंटी व्यक्तिगत तौर पर दी भी नहीं जा सकती क्योंकि देश की आजादी और गुलामी के लिए कोई एक नहीं बल्कि हर एक जिम्मेदार है। आज अमीर और अमीर हो गए हैं और गरीब और गरीब। किसी के पास दो जून की रोटी का भी ठौर नहीं है तो किसी को व्यंजन से भरी थाल भी नहीं सुहाती और इन विषमताओं का कारण क्या है....क्या केवल राजनीतिज्ञ और राजनीति? काफी हद तक सत्ता ही इसके लिए जिम्मेदार है लेकिन हमारे योगदान को भी तो अनदेखा नहीं किया जा सकता। हम भी तब तक सोये रहते है जब सांस लेना मुहाल ना हो जाए और फि‍र जागते ही हाय तौबा मचाने लगते हैं। 16 अगस्त से जिस लड़ाई के लिए आज हम इतनी जोर शोर से तैयारी कर रहे हैं उसकी जरूरत ही न पड़ती अगर हम सब अपने हिस्से की ईमानदारी रखते और जिम्मेदारी  बरतते। और अगर तय ही कर लिया है कि हर दस साल बाद आजादी की लड़ाई लड़नी है तो जैसा अब तक चलता रहा है चलने दीजिए। 15 अगसत 2011 को आजादी की 64वीं सालगिराह मनाइयेगा और 16 से आजादी की लड़ाई लड़ियेगा। क्या ये उन शहीदो का अपमान नहीं लगता जिन्होंने स्वर्णिम भारत के सपने को साकार करने के लिए जान दे दी थी। तय हमें करना है कि इस बार वाकई क्या हम आजाद होना चाहते हैं या यूं ही भ्रष्टाचार, अराजकता, .......के गुलाम बने रहना।

4 comments:

Atul said...

blog par bhadaas nikaalo kyunki desh aise hi chalega isme koi sudhaar nahi hone wala kyunki puri janta 9 ke 100 karne me lagi kisi ko desh ki nahi padi....

sumit said...

very good

चंदन कुमार मिश्र said...

आजादी को लेकर मैंने भी कई बार लिखा है। आजादी इतनी ही है कि काम चल जाये न कि कुछ हो जाये। और युवा…कुछ जागरुक वागरुक नहीं लगते।

Devashish kumar said...

aazadi ke liye har star(stage) par ladai karni hogi. apni buri aadaton aur apni baimaniyon se bhi.. yuva jab tak is sangharsh mein gambhir hai tab tak toh thik hai. nahi toh aaj kal ke adherya yuvaon ko har jagah fun chaiye. they are always fun seeking angd fun loving. india gate par kuchh aise yuvaon ka anupaat tha jo sirf "tamasha" dekhne aaye the.

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