Friday, September 02, 2011

आज वो भी मुझसे कहीं खो गया....

मेरी हि‍फाजत के लि‍ए जो ताबीज़ तुमने मुझे पहनाया था 
आज वो भी मुझसे कहीं खो गया।
कुछ भी याद नहीं कहां खोजूं उसे, तुम्‍हारी तरह आज
वो भी मुझे छोड़ गया।
याद है, बचपन में तुम झाड़-फूंक करके, मेरी नजर उतारती
और मैं तुम्‍हे गंवार कहकर परेशान करती
ये ताबि‍ज़ भी जब, तुमने पहनाया मुझे
कि‍तना रूलाया और सताया था मैंने तुम्‍हें
लेकि‍न तुम्‍हारे जाने के बाद उसी में बसा लि‍या था तुम्‍हे
हर काम के पहले बस उसे ही नीहारा था मैने
तुम्‍हारी कमी तो थी लेकि‍न उसके पास होने से
तुम्‍हारा होना भी महसूस कि‍या था मैंने
आज वो भी मुझसे खो गया
तुम्‍हारी यादों की ति‍जोरी था वो
तुम्‍हारी छोटी-छोटी बात पर फि‍क्र करने का
एहसास था वो।
उसके खोते ही न जाने क्‍यो डर लगने लगा है
जैसे सच में मेरे साथ बुरा होने वाला है
आज तुम्‍हारी तरह मैं भी अंधवि‍श्‍वासी बन गई
देर से ही सही, पर आज समझ आ ही गया मुझे
मां, अंधवि‍श्‍वास नहीं वो तुम्‍हारा प्‍यार ही था
जब तुमने अपनी बाली बेचकर वो ताबि‍ज़ पहनाया था मुझे
आज वो भी मुझसे खो गया
और एक बार फि‍र तुम्‍हारे जाने का
दर्द मेरे भीतर जवां हो गया।




4 comments:

चंदन कुमार मिश्र said...

स्मृति और कविता। बेहतर और सुन्दर।

Rahul Singh said...

यादों की तिजोरी, भरोसे का खजाना.

Devashish said...

no comments..

N Rai said...

Ati sundar

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