Monday, September 05, 2011

अच्‍छा हुआ मीर, जो तुम चले गए.....


मीर तक़ी मीर पर लि‍खी एक कि‍ताब पढ़ रही थी। उसी में ये कि‍स्‍सा भी पढ़ा.... कि‍स्‍सा कुछ यूं है कि; मीर साहब कहीं जा रहे थे और उनके पास कि‍राए के पैसे नहीं थे। गाड़ीवान ने उनसे पैसे मांगे, तो उन्‍होंने कहा कि‍ मेरे पास पैसे नहीं है। इतने में एक दूसरे मुसाफि‍र ने, बड़ी उदारता दि‍खाते हुए मीर का कि‍राया दे दि‍या। मीर ने उसे धन्‍यवाद दि‍या और मुंह फेरकर बैठ गए। वो आदमी मीर से बातें करता रहा, जब काफी देर तक मीर ने कोई जवाब नहीं दि‍या तो वो चि‍ढ़ गया। बोला- एक तो मैंने तुम्‍हारे पैसे चुकाए, ऊपर से तुम ऐंठकर बैठे हो, जवाब तक नहीं दे पा रहे। ये सुनकर मीर ने उससे कहा कि मैं आपका एहसानमंद हूं जो आपने मेरे पैसे दि‍ये लेकि‍न माफ कीजि‍एगा आपकी ज़ुबान बहुत गन्‍दी है, आपको न तो शब्‍दों की पहचान है और ना ही उसकी पाबंदी का ज्ञान। मुझे डर है कहीं आपके साथ बात करके मेरी जबान भी, आप जैसी ही ना हो जाए और मीर दुबारा मुंह फेरकर बैठ गए।
पढ़कर लगा कि‍ एक वो दौर था, जब लोग अपनी ज़बान को लेकर कि‍तने सजग हुआ करते थे और एक आज का दौर है, जि‍समें आप जि‍तना फूहड़ बोलें उतने आधुनि‍क समझे जाते हैं। कॉलेज का चौथा-पांचवा दि‍न रहा होगा मेरा...लखनऊ से आई थी, तो दि‍ल्‍ली को समझना बस शुरू ही कि‍या था। कुछ बात हुई कि‍ मैं अपनी क्‍लासमेट को छोड़कर अकेले ही लंच करने आ गई। पीछे से वो आई तो उसने आते ही कहा; बड़ी हरामखोर है तू, हमें छोड़कर चली आई। उस दि‍न तो कुछ नहीं कहा लेकि‍न कुछ दि‍न साथ रहने के बाद ये महसूस कि‍या कि‍ जैसे; अरे यार या सुन यार का प्रयोग सम्‍बोधन में करते हैं, हरामखोर शब्‍द कुछ ऐसा ही है उसके लि‍ए। लेकि‍न ये जरूर कहा कि आगे से मुझे ये ना कहा करे, मुझे बुरा लगता है, बहुत हंसी थी वो मुझपर... कि‍ मुझे ये शब्‍द इतना बुरा लगता है जबकि‍ ये तो कि‍तना कॉमन है।
ऐसा नहीं था कि‍ इस तरह की गालि‍यां देने वाली वो अकेली थी, कुछएक को छोड़ ये शब्‍द सभी के लि‍ए बहुत कॉमन थे। दि‍ल्‍ली में रह रही हूं, तो यहीं की बातों का उदाहरण देना सही रहेगा, हो सकता है देश के अन्‍य भागों में इससे भी ज्‍यादा बेहूदगी से बात की जाती हो...। दि‍ल्‍ली में जहां भी दो-चार लड़के खड़े होकर बात कर रहे हों, आप बस वहां कुछ देर रूक तो जाइए... पांच मि‍नट के अन्‍दर वो मां-बहन से जुड़ी सारी गालि‍यां आपको रटवा देगें। असल में शायद ये रि‍वाज़ बन गया है कि‍ उनकी बात की शुरूआत ही गाली से कुछ इस तरह होती है कि...ओ तेरी...... की मैं जा रहा था तो बहन का.... मि‍ल गया, साले..... के पास क्‍या बाइक है इसी तरह के ना जाने कि‍तने फूहड़, बेहुदा शब्‍द उनकी बात से जुड़े होते हैं। और ताज्‍जुब तब, जब आपको ये पता चले कि‍ ये सारे शब्‍द उनके लि‍ए गाली हैं ही नहीं।
एक दोस्‍त दूसरे को मां-बहन की गाली देता है, तो वो इसे बहुत प्‍यार से स्‍वीकार करता है, और दोनों ऐसा दि‍खाते हैं कि कि‍तने जि‍गरी यार हैं। एक-दूसरे को गाली देना ही दोस्‍ती का पैमाना बन गया हो जैसे, जो जि‍तनी गाली दे वो उतना खास। और ये बात केवल बड़ों तक नहीं, छोटे-छोटे बच्‍चे भी पूरे फ्लो से मां-बहन की गाली देते हैं। मां-बाप के सामने देते हैं, और उन्‍हें कोई ऐतराज़ भी नहीं होता। वैसे वो ऐतराज़ कर भी नहीं सकते, क्‍योंकि‍ बच्‍चा सीखता वही है जो देखता है, सुनता है। लेकि‍न एक बात जरूर है कि‍ अगर इस वर्ग की अधि‍कता है, तो छोटा ही सही पर एक वर्ग अभी भी ऐसा है, जो जबान और शब्‍दों की कीमत समझता है।
मेरे एक सर ने गालि‍यों पर ही रि‍सर्च की है, दि‍ल्‍ली में ही रहते हैं। उन्‍होंने एकबार बताया था कि गालि‍यां सुनकर या अपमानजनक बातें सुनकर हमारे शरीर में एक वि‍शेष प्रकार के हार्मोन का रि‍साव होता है, जि‍सकी वजह से हम अपना आपा खो देते हैं। और रही बात मां-बहन की गालि‍यों की तो मां-बहन घर की इज्‍जत होती हैं और अगर कोई उन्‍हें लेकर गाली बके, तो ये भाव ज्‍यादा उग्र हो जाते हैं। लेकि‍न उनकी बात कभी सच नहीं लगी, क्‍योंकि‍ यहां तो लोग खुशी-खुशी मां-बहन की गाली देते और सुनाते हैं।
बहुत सोच-वि‍चार के बाद यही तय कि‍या कि‍, अच्‍छा है आज मीर ज़ि‍न्‍दा नहीं हैं तो बेचारे गूंगे-बहरे की तरह जि‍न्‍दगी बि‍ता रहे होते और मुंह फेरकर भी खुद को बचा नहीं पाते।

4 comments:

kalyan kumar said...

chunki aap lucknow ki ho,jahan ki tahzeeb k kisse puri duniya me mashoor hain,isliye aapko itna bura laga.waise gaaliyon ko log fashion samajhne lage hain.

चंदन कुमार मिश्र said...

कल्याण जी ने फैशन की बात कही है। वह सही ही लगती है। मैंने भी अपने इलाके में चलने वाले एक आम लेकिन बुरे अर्थ वाले शब्द का प्रयोग अप्रत्यक्ष रूप से एक सहपाठी पर कर दिया था जिसकी वजह से हम दोनों में बात तक बन्द हो गयी कुछ दिनों तक। जबकि हमारे इलाके में उसका एक छोटा अर्थ ही प्रचलित है। वह शब्द है 'हरामी'। इस शब्द का प्रयोग हमारे इलाके में घोर दुष्ट या महा शैतान के लिए किया जाता है लेकिन उसका दूसरा अर्थ फिल्मों में सुनने को मिलता है और कई दूसरी जगहों पर भी। लेकिन अपनी आदत नहीं छूटी अब तक। वैसे मैं साला शब्द भी आज तक 2-4 बार नहीं बोला किसी को या अन्य प्रचलित गाली वाले शब्द की तो सम्भावना ही नहीं है।

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