Saturday, October 22, 2011

स्वयंजन हिताय...सुखाय की नीति का बेहतरीन उदाहरण हैं ये पार्क...


आए दिन मायावती, मायावती सरकार और उनके पार्कों पर तरह-तरह के बयान सुनने को मिलते ही रहते हैं। पक्ष और विपक्ष दोनों में ही....। जहां ये सारी बातें सुनने को मिलती हैं...वहां एक पढ़ा-लिखा वर्ग ही बयानबाजी करता है... कुछ को मायावती की किस्मत से जलन हैं तो उन्हें कोसता है, तो कुछ इस बात पर उनकी तरफदारी करते हैं कि माया ने लखनऊ को लखनऊ नहीं दिल्ली बना दिया है...कुछ इलाकों को तो लंदन.. भले ही वे लंदन न गए हों पर अतिश्योक्ति अलंकार में भी वही सुख है जो निंदा रस में।
हर रोज ही इस तरह के विवाद पर बहस होती रहती है...व्यक्तिगत तौर पर मायावती की नीतियां सर्वजनहिताय से ज्यादा सर्वजन दुखाय ज्यादा लगती हैं...लेकिन इस बात से भी सहमत हूं कि अकेली औरत ने पूरे सूबे को अपना लोहा मनवाया है... बड़े-बड़े सूरमाओं को नाक रगड़ने पर विवश कर दिया है..। इतिहास सदैव विजेता के दृष्टिकोण से लिखा जाता है... इस आधार पर निश्चित रूप से माया नाम इतिहास में दर्ज हो चुका है।
पर बीते दिन उस वर्ग को भी सुनने का मौका मिला, जो अपने काम से लखनऊ को गतिशील बनाता है। लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन से ऑटो पर बैठी.. आलमबाग तक जाना था..। उसी दिन राहुल गांधी अमेठी के एकदिवसीय दौरे पर आए हुए थे..., और हमेशा की तरह कॉन्ट्रोवर्सी हो गई थी कि एक युवक लाइसेंसी रिवाल्वर लेकर सुरक्षा घेरे में घुस गया था, जिसे एसपीजी ने गिरफ्तार भी कर लिया था।
 ये बात मैं एक मित्र को फोन पर बता रही थी और जैसे ही फोन रखा ऑटो वाले ने पूछा मरा कि नहीं..? मैंने कहा नहीं भइया..लड़का पहले ही पकड़ लिया गया ...। मेरा जवाब उसे पसंद नहीं आया.. बहुत हताश हो गया। इतने में हम मवइया पहुंच गए थे..।
 जो लोग लखनऊ को अच्ळे से जानते होंगे उन्हें पता होगा कि मवइया किस बला का नाम है..जहां बिन बरसात भी पानी भरा रहता है..आम दिनों में आधे घंटे का जाम लगना समान्य है और त्यौहारों पर घर से एक-दो घंटा एक्स्ट्रा टाइम लेकर ही चलने में ही भलाई।  
खैर मवइया से आगे चलने पर साथ बैठी औरत ने अनुरोध किया भइया जरा आराम से चलाना.. छोटा बच्चा है। उसकी गोद में साल-दो साल का बच्चा रहा होगा। ऑटो वाले ने हां में जवाब देने के साथ ही अपनी भड़ास भी निकालनी शुरू कर दी.. पहला वाक्य निकला... पार्क बनवाई जा रहीं और सड़क बनवाए में मरी जा रहीं हैं। इतनी खराब सड़क है कि ऑटो की हालत बिगड़ जाती है..। पार्क बनवाकर क्या होगा..सड़क बनवा देंती तो सबका भला होता।
एक बार दुख का बांध खुला तो तार-तार होकर ही माना...।
बताने लगा कि उसके खुद के ३ ऑटो हैं, २ वो चलवाता है और खुद एक चलाता है तब कहीं जाकर उसके घर का गुजर हो पाता है। हर तीन महीने पर ऑटो की मेंटेंनस करवानी पड़ती है.. पहले सीएनजी का दाम २९ था, फिर ३१ हुआ और फिर सीधे ३९ हो गया..ऐसै में अगर ऑटो वाले दाम बढ़ाते हैं तो सवारी उन्हें ही ठग समझती है।
कहने लगा कि पढ़ने का भी कोई फायदा नहीं है... उसका छोटा भाई बीएससी करके भटक रहा है..। बात करते करते मवइया से आलमबाग आ गया और इसके साथ ही उसके दिल की मुराद भी..कि इन सभी को (नेताओं को) एक लाइन में खड़ा करके मार देना चाहिए.. और मायावती के तो दिन पूरे समझो, इस बार नहीं आएंगी..लौटकर।
ये एक ऑटो वाले के स्वतंत्र विचार थे, जिसे कहने में उसे कोई डर नहीं लेकिन मीडिया में , इस बात को कहने का माद्दा नहीं। फंड की टेंशन, ऐड की टेंशन और ना जाने किन किन सुविधाओं के छिन जाने की टेंशन...ने जबान बंद कर रखी है।
 पार्क बनवाने और इमारतें बनवाने को खुद सुप्रीम कोर्ट सशर्त मंजूरी दे चुका है और माया सरकार ने भी आम जनता के मनोरंजन का हवाला देकर ही इन पार्कों का निर्माण करवाना शुरू किया था। पार्क तो बन गए लेकिन बरसों से दरार, फिर खड्ड और अब घाटी बनने की कगार पर पहुंच चुकी सड़कें ना ही प्रशासन को दिखती हैं और ना ही मीडिया उन्हें दिखाता है। हर रोज अम्बेडकर पार्क पर तो कॉलम आ जाते हैं पर मवइया समेत ऐसी सड़कों की बदहाली पर लिखने में, कहने में, दिखाने में मीडिया भी डरता है कि कहीं प्रशासन की कमी बता दी तो दीवाली पर मिलने वाला ऐड न कट जाएगा।  
अम्बेडकर पार्क वाकई बेहद खूबसूरत बना हैं लेकिन हम जैसे सैकड़ों-हजारों लोगों के घर का रास्ता आज भी मवइया जैसी गंदी सड़कों से ही होकर गुजरता है और अंबेडकर पार्क जाने के लिए भी इन्हीं सड़कों से होकर आना-जाना पड़ता है...ऐसे में आम जनता का मनोरंजन तो क्या होता है कमर में दर्द जरूर हो जाता है.. और अगर प्रशासन इन पार्कों के निर्माण को ही सर्वजन हिताय कहती है तो उसे टैग बदलकर स्वयंजन हिताय और स्वयंजन सुखाय कर लेना चाहिए क्योंकि इन पार्कों से किसका मनोरंजन हो रहा है और किसके मनोरंजन का साधन जुट रहा है सभी जानते हैं।   

4 comments:

P.N. Subramanian said...

"इतिहास सदैव विजेता के दृष्टिकोण से लिखा जाता है" बिलकुल सही. माया की माया के क्या कहने!

चंदन कुमार मिश्र said...

मरा कि नहीं…और सबको गोली मार देनी चाहिए…अच्छे विचार और सवाल थे…

Atul Shrivastava said...

जनता को मूलभूत स‍ुविधाएं पहले मिलें ये जरूरी है.... पर ये नेता ऐसे गैर जरूरी कामों में जनता का धन बरबाद कर रहे हैं।
आपने अच्‍छा लिखा.....

Rahul Singh said...

प्राथमिकताएं अपनी-अपनी.

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