कहते हैं बंगाली चाहे कहीं भी चले जाएं...एक छोटा-सा कलकत्ता बसा ही लेते हैं...और कुछ ऐसा ही बनारसियों के साथ भी है। चाहे कहीं भी चले जाएं बिसनाथ(विश्वनाथ) गली का प्रतिरूप तलाश ही लेते हैं...। कुछ इसी तरह की तलाश पूरी हुई कानपुर के परमठ जाकर...। गंगा का किनारा...भीड़-भाड़,चिल्ल-पों..भिखारी, और बहुत कुछ वो सब जो बनारस की गलियों की शान हैं....। परमठ में बिताए कुछ बेहद खास घंटे...
और ये है एक पगली...फोटो खींचते वक्त दौड़कर आई और कहने लगी मेरी भी पोटो खींचो..देखो कितनी सुंदर हूं मैं..फोटो खींच जाने के बाद अगली फरमाइश हुई कि अगली बार जब आना तो मेरे लिए भी कैमरे वाला मोबाएल ले आना..और नहीं तो वो मेरा ही ले लेगी...
गई थी केवल मंदिर भगवान के दर्शन करने पर...बहुत से रंग देखने को मिले।।...मंदिर के अंदर फोटो खींचना मना था सो शिवलिंग के दर्शन तो जाकर ही कर सकते हैं...।
मंदिर का मुख्य द्वार...बेहद भव्य और विशाल
मख्य द्वार से मंदिर करीब १० मिनट चलने के बाद आता है और रास्तेभर तरह-तरह के प्रसाद,फल-फूल धतूरे बेचने वालों की रंग-बिरंगी दुकानें आपको मेले का सा एहसास कराती हैं....
साधु-सन्यासी के भेष में जरूर हैं...पर मोह-माया से मुक्त नहीं..साथ बैठकर पैसों का हिसाब कर रहे थे
हालांकि सांप को इस तरह बंधक बनाकर तमाशा करना या नाग देवता के नाम पर ठगना गैर कानूनी है लेकिन सच ये भी है कि इनके सम्मोहन को आप नकार नहीं सकते और बरबस ही खड़े होकर, पैसे देकर बीन पर सांप का नाचना देखने लग जाते हैं।
इस नाग को देखना वाकई एक मजेदार अनुभव रहा...फोटो में भले न दिख रहा हो लेकिन इसके सिर पर करीब ३ इंच लम्बे बाल थे..और एक-दो नहीं बल्कि गुच्छे के रूप में।
और ये हैं दो तुलनात्मक तस्वीरें..बाईं ओर जो किताबें हैं ये वो किताबें हैं जो हम बड़े भक्ति भाव से खरीदकर अपने अपने घर ले जाते हैं..जाप करते हैं...लेकिन वहीं दूसरी ओर वो किताबें हैं जो गंगा के किनारे फेंकी पड़ी मिली..काम खत्म तो गंगा को कूड़ाघर समझ, पाप से बचने का नाम देकर सबकुछ फेंक आने का पुराना रिवाज़ ..
और ये है आज की हाईटेक सोसाइटी का हाइटेक तरीका..जहां पेप्सी की ग्लास में दूध और ठंडई चढ़ाई जाती है
फुटपाथ का बिस्तर है तो है ईंट का तकिया
यह नींद के यूं कौन मज़े लूट रहा है
ये शांत इसलिए है क्योंकि टांग टूटी हुई है..और प्लास्टर लगा हुआ है..
और ये है हमारी-आपकी असलियत..मां कह-कहकर..उसी पर थूकते हैं..। कानपुर में गंगा की दुर्दशा देखकर अफसोस जरूर होगा..कि क्या ये वही गंगा है...जिसका जल कभी चरणामृत के रूप में पीया करते थे...
गई थी केवल मंदिर भगवान के दर्शन करने पर...बहुत से रंग देखने को मिले।।...मंदिर के अंदर फोटो खींचना मना था सो शिवलिंग के दर्शन तो जाकर ही कर सकते हैं...।
5 comments:
देखे…ठीक ही है…
मंदिरों के साथ ब्रह्म हो न हो माया तो होती ही है.
अच्छी चित्रमय यात्रा के लिए आभार।
हर तस्वीर और तस्वीरों के साथ उन तस्वीरों का परिचय परमठ मंदिर के आसपास के दृश्यों को जीवंत कर गई।
expressions are very good God provide this type of quality to someone.
Nice article.
Thank you
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