Thursday, April 19, 2012

तीरि‍या..चरि‍त्‍त्‍र देबो न जाने....


त्‍याग,बलि‍दान और करूणा से इतर औरत वाकई में एक अबूझ पहेली है..जि‍से समझना शायद बहुत मुश्‍कि‍ल है..अपने देसी भगवानों के लि‍ए तो कहावत भी है कि‍ तीरि‍या..चरि‍त्‍त्‍र देबो न जाने....।
दो दि‍न पहले छोटू का रि‍जल्‍ट आया था..आउटस्‍टैंडिंग। ग्रेडिंग सि‍स्‍टम की वजह से रि‍पोर्ट कार्ड पर रैंक तो नहीं लि‍खी थी लेकि‍न मैम ने ये जरूर कहा था कि‍ तुम ही फस्‍ट हो। छोटू की खुशी का ठीकाना नहीं था..आउटस्‍टैडिंग से ज्‍यादा फस्‍ट कहलाने की खुशी थी। वजह दो थी..एक तो मम्‍मी के ताने, कि‍ देखो चारू फस्‍ट आयी थी तो उनके घर से मीठाई आई थी, प्‍लेट नहीं लौटाया हैं तुम भी फस्‍ट आओ तो इसी में मीठाई करके भेजेगें। दूसरी वजह ये थी कि‍ साइकि‍ल दि‍लाने के लि‍ए पापा ने फस्‍ट आने की शर्त रखी थी....घूस लेने-देने की पहली क्‍लास..।खैर 10 की जगह 20 रुपए का रि‍क्‍शा करके छोटू घर पहुंची..मम्मी खुश..पापा मगन..। पूरा रि‍जल्‍ट अभी देखा भी नहीं और पूछ बैठीं कि‍ चारू की मम्‍मी को दि‍खाते हुए आई हो कि‍ नहीं..जाओ उनको दि‍खा दो। मीठाई जाती रहेगी..रि‍जल्‍ट तो दि‍खा आओ। दो घंटे के भीतर शायद पूरी कॉलोनी को पता चल चुका था कि‍ छोटू फस्‍ट आयी है और वो भी बि‍ना टयूशन पढ़े जबकि‍ चारू तो मैथ का टयूशन पढ़ती है। अच्‍छा चारू 7वीं में है और छोटू 5वीं में। आज द्रष्‍टि का रि‍जल्‍ट आया..फस्‍ट नहीं आई। घर पहुंचते ही पहले तो कुटइया हुई फि‍र मम्‍मी ने सि‍खाया कि‍ कोई भी पूछे तो बोलना कि‍ फस्‍ट ही आई हूं..।
इसके पीछे वजह सिर्फ एक थी कि‍ कोई भी अपनी पड़ोसन से खुद को कमतर नहीं देख सकती..और आपस की जलन को बच्‍चों पर भी थोपने में उन्‍हें कोई बुराई नजर नहीं आती..। घर बार की चिंता से ज्‍यादा टेंशन इस बात की रहती है कि‍ पड़ोसी के बच्‍चे के कमरे की लाइट इतनी रात तक क्‍यों जल रही थी। अगर ये पता चल जाए कि‍ वो रात में पढ़ रहा था तो अगले दि‍न से ये औरतें अपने घर में भी वही टाइम टेबल सेट कर देती हैं। अपने बच्‍चों के नंबर से ज्‍यादा ये मायने रखता है कि‍ कि‍तने नंबरों से पड़ोसन का बच्‍चा पि‍छड़ा है..। लेकि‍न उनके लि‍ए ये कि‍सी भी तरह से गलत नहीं है..कॉम्‍पटीशन की भावना जगाने जैसा है....लेकि‍न शायद एक ऐसा कॉम्‍पटीशन जो जज्‍बे को नहीं कुण्‍ठा को बढ़ावा देती है...। 

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