गंगा किनारे बैठकर पहला ख़्याल यही आया, धर्म अच्छी चीज़ है. छठ पूजा का वक्त था, सुबह की पूजा होने वाली थी. औरतें, मर्द, बच्चे सभी सूर्य का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे. सूर्य उस दिन वाकई भगवान लग रहे थे. वरना तो हम शहरों में रहने वालों के लिए सूर्य अब केवल मौसम का पर्याय है. गर्मी में सूरज खटकता है और सर्दी में उसका इंतज़ार रहता है.
सूर्य की लालिमा देखते ही शोर मच गया, सूरुज उग गईल...न जाने कितने सालों बाद गंगा के घाट पर बैठने का मौका मिला था. गंगा को देखकर हमेशा ये लगा, कितना बड़ा दिल है इस नदी का. सब कुछ कितना शांत होकर सह रही है. लोग गंगा को पूज रहे थे और उसी में थूक भी रहे थे...खैर पूजा शुरू होने में और भगवान के आने में कुछ वक्त पहले लोग अपनी-अपनी बेदी पर पूजा की सामग्री सजा रहे थे औरतें गंगा जी में, हाथ में अगरबत्ती लिए खड़ी हो रही थीं और उनके घर के लड़के, आदमी गन्नों को गंगा में जमा रहे थे. देखकर अच्छा लगा, हर कोई एक-दूसरे की मदद कर रहा था. कोई दूसरे के गन्नों को लगाने में मदद कर रहा तो कोई अपने हिस्से के दूध में से दूसरे को भी कुछ चम्मच दूध दे रहा था. भगवान प्रकट हुए, पूजा हुई और सब बिखर गया. घाट से पैर बढ़ाने के साथ ही सबका संयम, प्यार वहीं कहीं छूट गया. लगा धर्म, पूजा-पाठ, कर्मकांड अच्छा है, कम से कम लोगों को डर तो होता है कि इंसान बने रहना ज़रूरी है.
ये सारी बात गाज़ीपुर की है. वहां से बनारस के लिए बस ली...रात की ट्रेन बनारस से ही थी. लोगों ने कहा रोडवेज़ से जाना, प्राइवेट में लुच्चे-लफंगे भी मिल जाते हैं. सो रोडवेज में बैठ गई. बस में ज्यादातर लोग छठ की पूजा करके लौट रहे थे पर उनके अंदर कहीं से मानवता नहीं थी.
बस में बैठे शायद ही किसी शख्स को ये पता होगा कि अगर सीट पर लड़की बैठी है तो कैसे बैठना चाहिए...हालांकि उनके साथ भी लड़कियां थीं पर वो तीन वाली सीट पर मां और बाप के बीच में या भाई के साथ बैठी थीं. वहीं अगर लड़की अकेले सफर कर रही है तो ये उसकी गलती है...किसने उससे कहा की अकेली जाओ. कोई पैर पर झोला रखकर खड़ा हो जाता तो कोई पैर पर पैर....उनमें से एक को टोकने पर सुनने को मिला, अरे मैडम बाहिर से आई हैं. उस दिन फिल्म चक दे बहुत याद आई. हम अपने देश में ही मेहमान बनकर खुश होंगे...???
खैर ट्रेन शाम की थी...मण्डुवाडीह से शिवगंगा....इस दौरान काफी अच्छा वक्त रहा....बनारस देखा....पर प्लेटफाॅर्म पर पहुंचकर बहुत मज़ेदार वाकया हुआ. एक महोदय अपनी सजी-संवरी बीवी के साथ प्लेटफाॅर्म पर इलाहाबाद-हावड़ा ट्रेन का इंतज़ार कर रहे थे. ट्रेन आउटर पर खड़ी थी. मैडम ने सीट पर सामान रख रखा था, जिससे सीट पूरी भर गई थी. मैंने कहा सामान उठा लीजिए, मुझे बैठना है. मैडम तो कुछ नहीं बोली पर साहब बोले सामान नहीं हटेगा, पांच मिनट खड़ी रहिए मेरी ट्रेन आने वाली है...मैंने कहा, पर सीट लोगों के बैठने के लिए है सामान के लिए नहीं...तो बोले, ज्यादा ओकील मत बनो...ट्रेन आ जाएगी तो हट जाएंगे...
लौटकर आए तो कई लोगों ने पूछा मोदी ने कुछ काम शुरू किया?? मैंने कहा इतना देखा नहीं और जो देखा वहां तो कुछ नहीं दिखा...पर क्या लोगों को तमीज़ भी अब मोदी ही सिखाएंगे...!!! क्या लोग तमीज़दार होने के लिए भी मोदी का इंतज़ार कर रहे है....???
1 comment:
बहुत ही सटीक और सामयिक , बहुत बहुत शुक्रिया ......आज और अब बहुत जरूरत है ऐसी प्रतिक्रियाओं को व्यक्त करने की .
Post a Comment