अक्सर तितली का उड़ना,
चिडि़यों का चहचहाना
तुम्हारी याद दिला जाता है...
कई बार सोचती हूं, तुम होती
तो मेरे दिन की शुरूआत कैसे होती...
पहले तो तुम प्यार से उठाती...
पर तब भी जब मैं रज़ाई नहीं हटाती
तो तुम डांटती...
उस डांट का सारा मक़सद मुझे
नाश्ता कराकर भेजना होता.
नहाने के बाद जैसे ही मैं तैयार हो जाती
तुम नाश्ते के साथ लंच भी थमा देती
इस झिड़की के साथ की याद से खा लेना
आॅफिस के गेट पर पहुंचते ही तुम्हें न जाने
कैसे पता चल जाता और मेरा मोबाइल बज उठता
दोपहर में स्कूल की घंटी की तरह
तुम भी मोबाइल की घंटी बजा देती, खाना खाया...
6 बजे के आॅफिस में अगर पांच मिनट भी अधिक होता
तो तुम मालिकान को बुरा-भला कहना शुरू कर देती
रास्ते में दो बार तो फोन जरूर करती
घर पहुंचते ही, तुम पुलिस सी बन जाती
स्ुबह से लेकर शाम तक तुम्हारी बेटी किससे मिली,
कैसे मिली, क्या किया सबकुछ पूछती...
खुद दिनभर काम करती रहती, पर मेरी थकान को
चेहरे से ही पढ़ लेती...
हम साथ चाय पीते, गप्पे मारते और फिर "घर का पका" खाते
मैं तब भी सोने के लिए तुम्हारा ही हाथ खोजती
हां, पर मेरे सपनों में तुम कहीं नहीं होती....
और अब...
सपनें ही तुम्हारा पता बन चुके हैं...
4 comments:
Nice
बहुत सुन्दर Seetamni. blogspot. in
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बहुत बढ़िया लेख हैं.. AchhiBaatein.com - Hindi blog for Famous Quotes and thoughts, Motivational & Inspirational Hindi Stories and Personality Development Tips
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