ज्योतिष नहीं जर्नलिस्ट की टीम के साथ करिए दिन की शुरूआत.... कुछ वक्त पहले तक एनडीटीवी पर प्रमोशन के लिए कुछ इसी तरह का स्लोगन सुनने को मिलता था। पर अब लगता है कि खबरों के साथ जर्नलिस्ट की टीम भी एनडीटीवी से गायब हो चुकी है।
खबरों की जगह झाड़-फूंक और तन्त्रमंत्र दिखाने वाले चैनलों की भीड़ में एनडीटीवी इंडिया ने रवीश की रिपोर्ट, विनोद दुआ लाइव, जिन्दगी लाइव जैसे बेहतरीन प्रोग्राम दिखाकर एक बहुत बड़े वर्ग को अपना मुरीद बना लिया था। लेकिन फिलहाल ये चैनल की परिपाटी से हटकर रेडियो की शक्ल अख्तियार करता जा रहा है। रवीश प्राइम टाइम में आने तो लगे, लेकिन बतौर एंकर। कभी दिल्ली के डिब्बा घरों में साग-भात खाने वाले वाले रवीश आज, स्नो-पाउडर के साथ तथाकथित बड़े लोगों के साथ बहसते, उनके झगड़ों को सुलझाते नजर आते हैं। एक बड़ा वर्ग (जिसकी सुनने वाला कोई नहीं) जो रवीश को अपनी आवाज समझने लगा था, आज फिर कट-सा गया है। कई बार दर्शक अपने चहेते ऐंकर भर को देखने-सुनने के लिए ही टीवी के सामने बैठता है, ऐसे में प्रेज़ेटरर्स को कैमरे के पीछे रखना चैनल को और महंगा पड़ सकता है। टीआरपी अच्छी खबरों से बढ़ती है ना की इन बिन मतलब के हेर-फेर से।
चैनल से शिकायत तो तभी शुरू हो गई थी जिस दिन, आम आदमी की तकलीफों को कैमरे पर लाने और हक़ दिलाने वाले प्रोग्राम रवीश की रिपोर्ट का अंतिम एपिसोड घोषित किया गया था।
खैर रवीश की रिपोर्ट के बन्द होने का व्यक्तिगत तौर पर बहुत दुख है। लेकिन उससे ज्यादा दुख इस बात है कि वर्तमान में चैनल के पास खबर नाम की कोई चीज़ ही नहीं रह गई है। जो ख़बर आप सुबह सुनेगें वही, रातभर चलती रहती है और एक लगातार...। इतनी ज्यादा रीपिटीशन की आपको याद हो जाए, वो भी वर्ड टू वर्ड।
पिछले कुछ दिनों से गौर किया कि लाइव प्रोग्राम के बदले चैनल पर रिकॉर्डेड प्रोग्राम का ही टेलीकास्ट ज्यादा किया जा रहा है। आज इस गलतफहमीं को दूर करने के लिए सबेरे 9 बजे से टीवी के आगे आंखे फाड़कर बैठी हूं लेकिन किसी न्यूज प्रेज़ेंटर के दर्शन नहीं हुए, देववाणी तो गूंज रही है लेकिन अदृश्य रूप में। इंटरनेशनल एजेंडा में नग़्मा दिखी, लेकिन वो भी रिकॉर्डेड ही था। इसी बीच खबर आ गई कि दिल्ली हाई कोर्ट में बम-ब्लास्ट हो गया है... उम्मीद जगी कि अब तो दर्शन हो ही जाएंगे लेकिन घटनास्थल से रिपोर्टिंग कर रहे कुछ रिपोर्टर्स (आशीष भार्गव, हृदयेश जोशी...) के अलावा कोई नज़र नहीं आया।
कुछ-एक कार्यक्रमों को छोड़ दिया जाए तो लगभग सारा दिन यही हाल बना रहता है। स्टूडियो से खबरों का खाका तैयार करने, रिपोर्टर्स और दर्शक के बीच मझौले का काम करने वाला कोई एंकर नहीं होता। ऐसे में किसी चैनल को देख पाना किसी बोझ सा लगने लगता है। जहां आप केवल किसी की आवाज सुन रहे हों और वो आपको दिखे नहीं। पता करने की कोशिश की तो मालूम चला कि ये चैनल का नया फॉर्मेट है, 20-20 बेस्ड। जिसमें सबेरे से लेकर शाम तक खबरों को एक ही ढर्रे में चलाया जाता है। ये बदलाव भी, बाकी परिवर्तनों की तरह टीआरपी की दौड़ में आगे निकलने के लिए ही है पर ये दांव भी उल्टा ही पड़ता दिख रहा है।
5 comments:
आपका लेख पढ़ा, औऱ फिर आपका ब्लॉग भी...तमाम अच्छी रचनाएं, हालांकि एनडीटीवी वाले लेख में मुझे लगता है कि और तमाम बिंदु रखे जाते तो शायद आप अपने लेख को ज़्यादा प्रभावी और विश्लेषण युक्त बना पातीं। दरअसल आप जिस तथ्य को लेकर लेख लिख रहे हैं, उसको लेकर तमाम सपोर्टिंग एविडेंसेस का एक साथ और ज़्यादा उदाहरणों सहित होना ज़रूरी लगता है। एक बार फिर लेख पढ़ कर देखिएगा, मुझे कहीं कुछ मिसिंग लगा है, हो सकता है आपको भी लगे, मैं भी अगले मेल में मिसिंग फैक्ट्स या एलीमेंट्स बताऊंगा...आप भी सोच के रखें, और बताइएगा...
हां बाकी ब्लॉग पोस्ट्स में कुछ वाकई अच्छी हैं।
आप का लेख काफी अछा होता है... एन डी टी वी के बारे में आप ने बिलकुल सही लिखा है.. वेसे फिलहाल सभी चैनलों का यही हाल है..
आप का लेख काफी अछा होता है... एन डी टी वी के बारे में आप ने बिलकुल सही लिखा है.. वेसे फिलहाल सभी चैनलों का यही हाल है..
मीडिया को कोसने के सिवा हम क्या करें चाहे वह कोई चैनल हो।
http://forum.bola.net/topic/5689-replica-watches-montreal/index.php?app=forums&module=post§ion=post&do=reply_post&f=3&t=5689
http://livedisc168.com/phpBB/posting.php?mode=reply&t=54965
Post a Comment