Tuesday, September 13, 2011

वि‍ज्ञापन.... जो ज़ि‍न्‍दगी का हि‍स्‍सा बन गए...

आज बाजार ने बहुत तरक्‍की कर ली है...प्रोडक्‍ट्स के मामले में हमारे पास वि‍कल्‍पों की कमी नहीं है। नहाने से लेकर खाने तक, हर जरूरत के सामान से बाजार पटा हुआ है। दुकानदार से एक मांगो तो वो सौ चीजें दि‍खाता है। सस्‍ते से सस्‍ता और महंगे से महंगा...जो आप अफोर्ड करें ले जा सकते हैं। बाजार में कोई प्रोडक्‍ट आए, उससे पहले ही टीवी पर उसके लि‍ए मार्केट बनना शुरू हो जाता है। 

ब्रांड-अम्‍बेसडर से लेकर स्‍लोगन और पि‍क्‍चराइज़ेशन कुछ इस तरह कि‍या जाता है कि‍ दर्शक एक बार में ही उसका मुरीद हो जाए, और कई बार ऐसा होता भी है। कुछ ब्रांड तो उक्‍त प्रोडक्‍ट के पर्याय ही बन जाते हैं, समान के नाम पर प्रोडक्‍ट का नाम ही प्रचलन में आ जाता है...।
आज यू-ट्यूब पर खीटपि‍ट करते करते बजाज स्‍कूटर का पुराना ऐड दि‍ख गया..और बरबस ही मुंह से हमारा बजाज...हमारा बजाज, नि‍कल पड़ा। जि‍स तरह ठण्‍डा मतलब कोका-कोला बन चुका है, एक वक्‍त था जब स्‍कूटर मतलब बजाज था। आज भी, भले ही इक्‍का-दुक्‍का लोग स्‍कूटर चलाते हों लेकि‍न ये कहने के बजाय की मेरे पास स्‍कूटर है, कहते हैं कि‍ मेरे पास बजाज है।
आज बाजार में सैकड़ों नूडल्‍स ब्राण्‍ड हैं लेकि‍न सम्‍मि‍लि‍त रूप में सब मैगी ही कहे जातें हैं। खुद मैगी नूडल्‍स में ही कई वेरायटी आ गई है फि‍र भी कि‍सी स्‍पेसि‍फि‍क नाम की जगह मैगी ही ज्‍यादा चलन में है। इस चलन और प्रचलन का प्रमुख कारण जहां इनकी गुणवत्‍ता रही है, वहीं इन प्रोडक्‍ट्स के वि‍ज्ञापनों ने भी आम जनता तक इसे पहुचाने में बड़ी भूमि‍का अदा की है।
यू-ट्यूब से साभार लेते हुए कुछ पुराने, क्‍लासि‍क भारतीय वि‍ज्ञापन, जो पर्दे से जि‍न्‍दगी में उतर गए।


बजाज स्‍कूटर, पहली कमाई से खरीदा गया पहला सपना, बीवी संग प्‍यार-सी ड्राइव का सहारा, बच्‍चे के लि‍ए बाप के साथ घूमने का मज़ा, बेटी के बाप के लि‍ए सबसे कि‍मती दहेज, बीमार के लि‍ए मुसीबत का सहारा और आज हम सबके लि‍ए बचपन की यादों को ताज़ा करने का एक माध्‍यम.... ‘मम्‍मी थोड़ी देर रूक जाओ, इस परचार के बाद...मोगली आएगा’।


बचपन में जब भी मां या पापा डांटते, तो यही लगता कि‍... कोई प्‍यार नहीं करता, सब दीदी को ही प्‍यार करते हैं। अक्‍सर सोचा कि‍ घर छोड़कर भाग जाउं और ये शायद सभी के साथ हुआ होगा। डांट, गुस्‍सा और छि‍पा प्‍यार....और सबकुछ, बि‍ल्‍कुल मेरे आपके घर के जैसा..

स्‍वास्‍थ्‍य भरे शक्‍ति‍ भरे पारले जी... तरह-तरह के फ्लेवर, रंग, पैकिंग में सजे सैकड़ों ब्राण्‍ड हैं बाजार में, लेकि‍न आज भी बि‍स्‍कुट की पहली तस्‍वीर पारले-जी ही है। जि‍से रि‍क्‍शे वाले से लेकर बाली‍वुड का सबसे योग्‍य एक्‍टर भी पसंद करता है।

असली स्‍वाद जि‍न्‍दगी का... से लेकर कुछ मीठा तक हो जाए तक की कामयाबी का सफर...सुबह पापा से चॉकलेट की पेशकश और शाम को उनके लौटने का इन्‍तज़ार.. कि‍ वो कब आएं और चाकलेट मि‍ले...।


जिंगल की दुनि‍या का सरताज.....


42 सेकण्‍ड में वो सबकुछ जो... 22 सालतक एक बेटी, अपने बाप से और एक बाप, अपनी बेटीसे दबी ज़बान में कहते रहते हैं। एक बैकग्राउण्‍ड म्‍यूज़ि‍क जो कुछ ना कहते हुए भी सबकुछ कह जाता है¬¬..


आज बाजार में तरह-तरह के ब्‍यूटी सोप हैं... लेकि‍न लाइफब्‍वाय उन कुछ ब्राण्‍ड्स में से है जि‍सने भारत की आम जनता को बाजार से जोड़ा... करइल की मि‍ट्टी से नहाने वालों के बीच एक नयी पहचान साबि‍त हुआ ये साबुन।

ये कुछ ऐसे ऐड हैं, जो अपने आप में कि‍सी एंटि‍क पीस से कम नहीं हैं...। आज मार्केट में इनके लाखों वि‍कल्‍प हैं लेकि‍न बचपन की यादों का शायद ही कोई वि‍कल्‍प मौजूद हो, जो इन विज्ञापनों से जुड़ी हैं।


6 comments:

बतकुचनी said...

kumar rajesh sankurk@gmail.com to me
show details 4:42 PM (8 minutes ago)
Hi Bhumika
tum achha likhati ho.

चंदन कुमार मिश्र said...

पुराने विज्ञापनों पर याद आया कि दूरदर्शन को तो अब लोगों ने भुला दिया है जी।

P.N. Subramanian said...

एक अच्छी प्रस्तुति. आप ने बहुत मेहनत की है. आभार.

Rahul Singh said...

रोचक संकलन.

Atul Shrivastava said...

बेहतरीन प्रस्‍तुति।
अच्‍छा संयोजन।
सच में कुछ विज्ञापन दिल में घर कर जाते हैं।
माफ कीजिएगा,, आपकी इजाजत के बगैर आपके इस पोस्‍ट को फेसबुक में अपने वाल में और अपने ग्रुप में शेयर कर रहा हूं।

सतीश पंचम said...

ये विज्ञापन जब आते थे तब उतना अच्छा नहीं लगता था, चैनल बदल देते थे। अब उन्हीं विज्ञापनों को देख अनोखा नॉस्टॉल्जिया फील होता है। कल को यही हाल अब दिखलाये जा रहे विज्ञापनों का होगा। जिन्हें हम अब देखते हुए चैनल बदल देते हैं कल यही हमें अच्छे भी लगने लगेंगे :)

बढ़िया संकलन रहा।

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