बीती रात लखनऊ समेत पूरे यूपी के लिए के लिए बेहद रोचक रही और मेरे लिए खासा तकलीफदेह। असाइनमेंट बनाकर ज्यों ही सोने के लिए बिस्तर का रूख किया हल्ला मच गया...पहले तो लगा कि शायद कहीं कोई चोर तो नहीं आ गया...लेकिन भ्रम जल्दी दूर हो गया और पता चला कि मुंह नोचवा पार्ट २ टाइप का बवाल है। खैर बवाल ये था कि न जाने किस अदृश्य ताकत ने या किस बेहद दिमागदार इंसान ने यह हो-हल्ला मचा दिया था कि जो लोग आज रात सोएंगे वे पत्थर के हो जाएंगे। खैर खबरें बहुत तरह की थीं जैसे...जमीन फट गई है..,डायन आ गई है..भूकंप आने वाला है और ना जाने कौन-कौन से दिलचस्प इंसीडेंट। ठकुराइन आंटी दौड़े दौड़े आईं और जोर-जोर से दरवाजा पीटने लगी... अरे उठो...देखो क्या हो गया है...एक अच्छे पड़ोसी की तरह दरवाजा खोला तो अच्छे होने का मलाल होने लगा कि आखिर दरवाजा खोला ही क्यों? दरवाजा खोलते ही अंटी शुरू हो गईं और एक टीपिकल परपंची महिला की तरह किस्सा सुनाने लगीं कि..पता है एलडीए में लोग पत्थर के बन गए है..जो लोग सो रहे हैं वो पत्थरके बन जा रहे हैं...ऐसा करो उठो और बाहर आओ।
रात के २ बजे जब पत्थर का बीस्तर भी फूलों सा लगता हो,ऐसे में कोई ऐसी खतरनाक बात करे तो विश्वास भले न हो पर बात की तह तक जाने का दिल तो जरूर करता है। घर से बाहर निकल आए..सड़क पर आकर देखा कि पूरी कॉलोनी पहरा दे रही है और चौकीदार बेचारा अपनी नौकरी को लेकर संदेहभरी नजरों से सबको देख रहा है ... कि आखिर ये सब क्यों पहरा देने क्यों बाहर आ गए है..?
खैर रात २ से सुबह ५ बजे तक का वक्त कयासों और तरह-तरह के भयानक,बेहूदे और बिना वजूद के किस्सों के नाम रहा। अंदाजा लगा कि लोगों को बिना-सिर-पैर की बातें करने में कितना मजा आता है...। ५ बजे और ऑफिस जाने की तैयारी शुरू हो गई...। पहले तो सोचा था कि ऑफिस का गोला मारो गुरू और रात की नींद पूरी करो...फिर नींद को समेटते हुए कर्मक्षेत्र के लिए करीब ६ बजे रवाना हो गए। रास्तेभर जो लोग मिले एक ही बात पर तरह-तरह के बयान देते दिखे..कि फलां गांव तो पूरा धरती मइय्या की गोदी में समां गया है...या फलां गांव में तो सभी पत्थर के हो गए हैं..। अच्छा इस बीच ये जरूर अंदाजा लग गया कि मीडिया खासतौर पर इलेक्ट्रानिक मीडिया किस कदर लोगों के दिलो-दिमाग पर हावी है..। हालांकि जिन न्यूज चैनलों पर ये खबर चल रही थी उसमें ये था कि ये महज एक अफवाह है लेकिन खबर का टीवी पर आ जाना उल्टा असर कर गया..। लोगों ने टीवी का हवाला दे-देकर बात का रायता फैला दिया।
बस से उतरकर रिक्शे पर बैठी तो रिक्शे वाले से जिक्र किए बिना नहीं रह पाई.. उसने बिल्कुल नई बात बताई। बोला...मैडम इ सब फोन कंपनी का किया-कराया है ताकि लोग एक-दूसरे को फोन करें और उनका पैसा बने। जहां इस वाकये के बाद सभी नींद और भारीपन से जूझ रहे थे वहीं चाय वाला बेहद खुश दिखा..बताया कि कल रातभर भट्टी जली है..दिन से ज्यादा रात में बिक्री हुई है।
यहां तक तो फिर भी ठीक था एक सज्जन ने तो ऐसा किस्सा सुना दिया कि कुछ बोला ही गया। बोलने लगे अरे पता है कल अमौसी पर २ स्पेशल विमान आए थे एक राज्यपाल के लिए और एक अपनी मैडम माया के लिए..विदेश जाने के लिए। लेकिन गए नहीं...। जितने मुंह उतनी ही बातें...। एक नई कयास ये भी लगाई गई कि हो न हो ये किसी प्रेमी की हरकत है जो छिपकर अपनी महबूबा से मिलना गया होगा और पकड़ाने के डर से ये हल्ला मचा दिया होगा ताकि आराम से भीड़ का फायदा उठाकर भाग सके। रातभर की थकान अब मनोरंजन में बदल चुकी थी..जो आता एक मुस्कान लेकर आता और शुरू हो जाता अपने टोले का किस्सा लेकर। एक जन ने तो बताया कि उनके इलाके का चौकीदार रातभर चिल्लाता रहा कि इंसान बने रहना है तो जग जाओ...।
जितने जिले उतने किस्से और हर किस्से के साथ जुड़ा एक जाहिलपना कि पढ़ा-लिखा होकर भी समाज किसी भी बात को लेकर पागल हो सकता है। गांव-देहात की बात तो बहुत दूर की है लखनऊ,प्रदेश की राजधानी में हाल ये था कि लोग रातभर जगे रहे। पढ़ाई-लिखाई का चूल्हे में परित्याग करके सब इस बात से डरे रहे कि कहीं हम पत्थर के न हो जाएं। लेकिन इस बात को भुनाने में मीडिया भी कम पीछे नहीं रहा...क्या नेशनल क्या रीजनल..हर चैनल तरह-तरह के एंगल से खबर परोसकर टीआरपी बटोर रहा था। लोग परेशान थे कि कहीं पत्थर के न हो जाएं और चैनल वाले एक-दूसरे को पछाड़ने में। खैर घर आते-आथे ए नई कहानी सुनाई दी कि ये फोन कॉल पाकिस्तान से आया था..पर ज्यादा अचरज नहीं हुआ। क्योंकि अपने देश ऐसी मानसिकता बन गई है अगर कुछ भी गलत है तो वो पाक की देन है...। लेकिन असल मुद्दा तो ये है कि एक फोन कॉल और पूरा प्रदेश जागरण रने में जुट गया...मंदिरों में यज्ञ होने लगे..मस्जिदों के फाटक खोल दिए गए और न जाने क्या-क्या। २-२,३-३ साल के बच्चों को लेकर मांएं रातभर सड़कों पर खड़ी रहीं कि कहीं कुछ गलत न हो जाए...। लेकिन एक बार भी इस बात के निराधार होने का ख्याल किसी के दिमाग में नहीं आया। इससे पहले भी इस तरह की बेबुनियाद बातें होती रही हैं..कि फलां दिसंबर २०१२ को धरती नष्ट हो जाएगी। यहां तक कि कई बड़े नामी चैनलों ने तो इस मुद्दे पर पूरा पैकेज तक पेश कर रखा है।
ऐसे में सिर्फ २ बातें ही कौंधती हैं कि मीडिया क्या दिखाना चाहता है क्या भारत में असल खबरों का टोटा हो गया है जो उसे इस तरह की तथाकथित खबरों को उछालकर समय मैनेज करना पड़ रहा है और दूसरा ये कि अपना समाज किस दिशा में जा रहा है। शिक्षा का स्तर क्या अब इतना मात्र ही रह गया है कि कल के दिन कोई भी किसी भी बेबुनियाद बात पर लोगों से कउछ भी करवा सकता है। समाज में निश्चित रूप से शिक्षा का स्तर बढ़ा है लेकिन सिर्फ साक्षर होने तक ...ज्ञान अभी कोसों दूर है।अभी भी अंधविश्वास उतना ही हावी है जितना आज से सदियो पहले।
11 comments:
अफवाहों पर लोगों का विश्वास सबसे पहले होता है......
रोचक किस्सा।
खबरों की तरह अफवाहों के लिए भी अब रास्ता आसान हो गया है.
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है। चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं.... आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......
ये अफवाह लाजमी न थी की वो मुस्कुराता गया अपनी मौज में और हम थे की अश्कों से दरिया भर गये...
वह क्या खूब किस्सा है...!
रोचक..:)
kalamdaan.blogspot.com
अफवाहें हकीकत से जादा तेज भागती हैं....
अफवाहों से बचेइसी में भलाई है बहुत अच्छी प्रस्तुति,मन की भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति ......
WELCOME to--जिन्दगीं--
अफवाहों का प्रचार बहुत तेजी से होता है..रोचक प्रस्तुति...
जब तक हम मन से असुरक्षित हैं, ये अंधविश्वास किसी न किसी रूप में हाबी रहेंगे ही, हम चाहे ही कितना आधुनिक खुद को कहें और समझें।
रोचक ....अफवाहों का बाजार कभी भी लगा लो ...वो गरम ही मिलेगा
बढिया अंदाज में लिखा...
रिक्शे वाले की समझ पर सबसे ज्यादा ध्यान गया मेरा! लाजवाब सोचा!
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