मनीषा इंडिया गेट पर बीट्स से ब्रैसलेट बनाने का काम करती है...दिन के 100-200 रुपए कमा लेती है..और पहली बोहनी होने पर सबसे पहले खाना खाती है...इंडिया गेट पर थाली नहीं चाउमिन मिलता है..सो वही उसका खाना है। तेज़-तर्रार मनीषा राजस्थान की रहने वाली है और यहां दरियागंज के पास रहती है।अक्षर ज्ञान की धनी है, सो जोड़कर पढ़ना आता है। साथ में एक टोकरी, जिसमें अंग्रेजी के अक्षरों के विभिन्न आकार के बीट्स भरे होते हैं..और कई रंग-बिरंगे धागे।
शिक्षा भले ही अक्षर पहचानने तक ही सीमित हो पर..सामाजिक ज्ञान खूब है उसके पास.. अपना माल किस तरह बेचना है..उसे बखूबी आता है।लड़के को लड़की का वास्ता देकर और लड़की को ब्वाय फ्रेंड का वास्ता देकर माल बेच लेती है.. और अगर मना कर दिया तो कंजूस कहकर...सीधे कहती है कि देख तुझे प्यार नहीं करता...और फिर क्या... लो जी मिल गया आर्डर...।
मनीषा को अपने इस काम से कोई शिकायत नहीं है वो खुश है,शायद इसलिए कि इसके आगे उसकी सोच कभी जा ही नहीं सकी ...या जाने ही नहीं दिया गया,सपने देखना नहीं जानती है वो। तुम स्कूल क्यों नहीं जाती...बड़ी होकर क्या बनना चाहती हो..पूछने पर वो खामोश हो जाती है...और फिर पूरी निष्ठा से अपना काम करने लगती है। इंडिया गेट ही नहीं..हर नुक्कड़-चौराहे पर मनीषा जैसे हजारों बच्चे हैं जिनके पास आंखें तो है पर सपने नहीं और जब सपने ही नहीं है तो लक्ष्य का सवाल ही नहीं उठता..लेकिन उनकी आंखों की ये खामोशी देश के स्वर्णिम भविष्य का सपना दिखाने वालों से कई सवाल पूछ जाती है...कि जब भविष्य का नेतत्व करने वालो के पास सपने ही नहीं हैं..सोच ही नहीं है तो देश के सुनहरे भविष्य की बात करना कितना व्यवहारिक है......।
2 comments:
मनीषा जैसे बच्चे हमारे भ्रष्ट सिस्टम की पोल रहे है. यह बच्चे बताते है कि इस देश में भ्रष्टाचार कितना बढ़ चुका है. जिस समय इन बच्चों को स्कूल में होना चाहिए, उस समय यह बच्चे अपनी रोटी का जुगाड़ कर रहे है. यथार्थ को दर्शाती पोस्ट के लिए हार्दिक बधाई.
इन बच्चों के लिए सरकारें तरह तरह की योजनाएं बनाती हैं पर अफसोस...एयरकंडीशन्ड कमरों में बनाई गई योजनाएं धरातल तक नहीं पहुंच पातीं।
सच को उजागर करती पोस्ट।
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