होली..हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार। लेकिन अगर इतिहास के पन्नों को पलटें और मुगलकाल में कदम रखें तो, इस्लाम में भी होली को एक प्रमुख त्यौहार के रूप में मनाए जाने के स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं।
मुग़ल शानो-शौकत से लबरेज होली
हिन्दू शासकों की ही तरह मुगल बादशाह भी होली खेला करते थे। इसका सबसे सटीक उदाहरण अकबर के रूप में मिलता है। हर धर्म को समान रूप से मानने वाला अकबर सभी धर्मों के त्यौहारों को उतने ही चाव से मनाता था, जितने चाव से वो ईद में शरीक होता था। खास बात तो ये है कि होली के दिन मेलों का भी आयोजन किया जाता था। होली के दिन की सारी तैयारियां, वो खुद अपनी देखरेख में पूरी करवाता और खुद भी उतने ही उल्लास से भाग लेता।
शाहजहां के काल में तो वैसे भी रंग और खुश्बू का साम्राज्य रहा। उस काल में होली को ईद- ए-गुलाबी या आब-ए-पाशी के नाम से जाना जाता था। मिलन समारोहों का आयोजन किया जाता था, जिसमें विभिन्न राज्यों के राजा और नवाब एक-दूसरे के राज्यों के मेहमान बनते थे। होली के दिन फूलों के रंगों और इत्र की वर्ष की जाती थी। आतिथ्य स्वीकार करने का एक मकसद ये भी हुआ करता था, कि पुरानी दुश्मनी को भूलाकर एक नए रिश्ते की शुरूआत की जाए।
जहांगीर ने भी इस प्रथा को आगे बढ़ाया और होली को परंपरा के रूप में स्वीकार किया। जहांगीर ने तो होली खेलने का उल्लेख बकायदा अपनी किताब तुज्क-ए-जहांगीरी में भी किया है। मुगलकाल के चित्रकारों की चित्रकारी देखें तो कई ऐसे सुंदर उदाहरण हैं जो मुगलिया शासन के रंगप्रेम का बखान करते हैं। कई चित्रों में नूरजहां के पीछे जहांगीर को पिचकारी लेकर भागते दिखाया गया है।
हालांकि औरंगजेब को लेकर कई बातें हैं कि वो बेहद गुस्सैल और कट्टर था लेकिन जानकारों का कहना है कि वो भी होली के रंगों का बड़ा शौकीन था। स्टेनले लेन पूल की किताब औरंगजेब में औरंगजेब के काल की होली का व्यापक वर्णन मिलता है। होली के मौके पर कई लोग टोलियों में बंटकर रंग खेलते थे और गीत गाकर सभी का मनोरंजन करते थे। टोलियां नाचते-गाते चलती थीं और कई तरह के गाजे- बाजे के साथ धूम मचाती हुई आगे बढ़ती थी।
सूफियों ने भी दिया होली को बढ़ावा
हिन्दू धर्म से अलग इस्लाम में मूर्ति पूजा का विरोध किया गया है। लेकिन इस्लाम में नीहित रहस्य पक्ष सूफी परंपरा में ही देखने को मिलता है। सूफियों ने रंग और संगीत के माध्यम से जहां इस्लाम को प्रसारित किया वहीं इस्लाम और हिन्दु समाज को जोड़ने का भी काम किया। सूफी संगीत पर आधारित है और सूफी संगीत में होली का खास महत्व है। अमीर खुसरों, हजरत निजामुदीन औलिया और ख्वाजा बिख्तयार ने भी बड़े ही रोचक अंदाज में होली की मस्ती को पेश किया है। खुसरो ने तो चिश्ती को बांके बिहारी की उपमा देकर लिखा है कि
मोहे सुगाहन रंग दे ख्वाजा जी
आओ सूफियों संग होरी खेलो।।
इसके अलावा भी कई ऐसे उदारण है जो इस्लाम को होली के रंगों से जुड़ा हुआ साबित करते हैं। ऐसे में ये कहना कि होली र्सिफ हिन्दुओं का प्रमुख त्यौहार है, गलत होगा। और देखा जाए तो होली के असली मायने भी तभी सही साबित होते लगते हैं जब सब मिलकर रंगों में सराबोर होकर इसका मजा लें।
3 comments:
रंग-तरंग और फाग-राग में सब शामिल.
लेख अच्छा है .. पर लॉक के होने से इसे वार्ता में स्थान नहीं दे पा रही .. हटा दें तो सुविधा रहेगी !!
BEAUTIFUL POST WITH DEEP KNOWLEDGE
AND NICE PICTURE.
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