विद्वानों ने प्यार
की ना जाने कितनी परिभाषाएं दी हैं और अक्सर हम उन परिभाषाओं में ही खुद के प्यार
को ढालकर देखने लगते हैं। पर अक्सर दूसरों की परिभाषाओं में खुद को ढालते-ढालते
हमारी अपनी कोई सोच रही नहीं जाती। लेकिन असलियत तो यह है कि किसी एक का प्यार
कभी किसी दूसरे के सांचे में समा ही नहीं सकता।
हालांकि प्यार को परिभाषित
करना ईश्वर को परिभाषित करने जैसा ही है पर इस विषय पर हर एक की अपनी एक सोच,
अपनी राय होती है। हर एक के लिए अपने प्यार की एक नई और अलग परिभाषा होती है।
ये जरूर सच है कि प्यार का भाव सबके लिए एक ही होता है लेकिन उस भाव को महसूस
करने, जताने और समझने का सबका अपना तरीका होता है। अमूमन प्यार को लेकर दो तरह के
ही लोग होते हैं। एक तो वो जो प्यार के नाम को ही पाप समझते हैं और दूसरे वो जो
जिनके लिए मां-बाप का प्यार, भाई-बहन का प्यार और तमाम रिश्तों का प्यार तो
प्यार होता है।
पर एक लड़के और लड़की के बीच के प्यार को वो दैहिक आकर्षण से
आगे देख ही नहीं पाते हैं। संभव है कि मेरी सोच परंपरागत सोच से परे हो पर अगर प्यार
केवल दैहिक आकर्षण होता तो कब का खत्म हो चुका होता। अगर किसी चीज का अस्तित्व
आदिकाल से है तो अवश्य ही उसमें कोई ठोस सच्चाई होगी। कुछ रूपों में देखा जाए
तो दैहिक आकर्षण की बात सही है...लेकिन असल में वो कभी प्यार होता ही नही है।
कितने ऐसे युगल होते हैं जो यह हिम्मत कर पाते हैं कि अपने घर पर बता सकें कि वह किसी लड़की से प्यार करते हैं। उसके साथ जिंदगी बीताना चाहते हैं। बहुत
कम...इक्का-दुक्का। क्योंकि वह खुद ही जानते कि वह उसके साथ रहना चाहेगें कि नहीं..रह पाएंगे कि नहीं। पर अगर वाकई प्यार है तो सच आपके साथ है और अगर कभी सच
की ताकत परखनी हो तो किसी से सच्चा प्यार कीजिए। आपके अंदर खुद एक ताकत आ जाती
है.., झिझक खत्म हो जाती है और डर भी...। खुद को भरोसा रहता है कि जो कर रहे
हैं वो एक सच्चे रिश्ते के लिए कर रहे हैं और जो सच्चा है वो कभी पाप हो ही
नहीं सकता।
असल में प्यार एक आम इंसान को खास बनाता है। हालांकि प्यार में दैहिक
आकर्षण के पक्ष को पूरी तरह कोई अनदेखा नहीं कर सकते लेकिन असल प्यार करने वालों
के लिए दैहिक सुख महज उस पानी के छीटे की तरह होता है जो एक खिले-खिले गुलदस्ते
को एक नयापन देता है।
एक शेर है अक्सर याद आता है...
मुहब्बत के
खरीदारां मियां ऊपर से आते हैं
मुहब्बत जिंदगी
देकर मिल जाए तो सस्ती है...
6 comments:
बढिया विश्लेषण !!
प्यार का अर्थ गहन है ..
आप भी गजब कि सावन में ये फ़साना ले बैठे :)
देह और मन का बराबर मेल है प्रेम !
आप भी गजब कि सावन में ये फ़साना ले बैठे :)
देह और मन का बराबर मेल है प्रेम !
आज एक पोस्ट दी है, उसे भी पढना।
खूब लिखा है!
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