ट्रेंड बदल गया है
अब किसी महापुरूष की जयंती की खुशी
उन्हें ज्यादा होती है
जो उसे छुट्टी का दिन मानते हैं..
वरना तो कोई जाकर पूछे
उन राजनेताओं से..उन अधिकारियों से
जो उनकी जयंती को खुद का मरण दिवस मानते है।।
पर मानें भी क्यों ना भला...
फूल चढ़ाने का वक्त सुबह का जो है..
सिर्फ इतना ही होता तो भी ठीक था
सोचती हूं कि
इन लालबत्ती सफेद पोशों का बैर जायज ही है..
जिन निस्वार्थियों के विचारों को सोचनेभर से ही
ईमानदारी की खुश्बू आने लगे
खुद के फकीर बनने के आसार दिखाई देने लगे
उन्हें कोई याद करे भी तो क्यों भला...
पर उनकी बात ही कुछ और है..
जो दिखावा नहीं करते
जो बापू और शास्त्री के जन्म दिवस को
जयंती न मानकर छुट्टी का दिन मानते हैं..
कम से कम महापुरूषों को कोसने के बदले दुआ तो देते हैं..
शायद उन्हीं का आशीष है जो बापू जैसे महापुरूष
हर साल जी जाते हैं..
कम से कम उनके जन्म को अपने
आराम का दिन तो समझते हैं..
वरना तो लोग उनकी जयंती को खुद का मरण ही मानते है
कल छुट्टी मनाकर
खुद को बाकियों से अच्छा महसूस कर रही हूं
गांधी-शास्त्री को कोसकर नहीं बल्कि सराहकर
उनके अगले साल भी आने की दुआ कर रही हूं।।
अब किसी महापुरूष की जयंती की खुशी
उन्हें ज्यादा होती है
जो उसे छुट्टी का दिन मानते हैं..
वरना तो कोई जाकर पूछे
उन राजनेताओं से..उन अधिकारियों से
जो उनकी जयंती को खुद का मरण दिवस मानते है।।
पर मानें भी क्यों ना भला...
फूल चढ़ाने का वक्त सुबह का जो है..
सिर्फ इतना ही होता तो भी ठीक था
सोचती हूं कि
इन लालबत्ती सफेद पोशों का बैर जायज ही है..
जिन निस्वार्थियों के विचारों को सोचनेभर से ही
ईमानदारी की खुश्बू आने लगे
खुद के फकीर बनने के आसार दिखाई देने लगे
उन्हें कोई याद करे भी तो क्यों भला...
पर उनकी बात ही कुछ और है..
जो दिखावा नहीं करते
जो बापू और शास्त्री के जन्म दिवस को
जयंती न मानकर छुट्टी का दिन मानते हैं..
कम से कम महापुरूषों को कोसने के बदले दुआ तो देते हैं..
शायद उन्हीं का आशीष है जो बापू जैसे महापुरूष
हर साल जी जाते हैं..
कम से कम उनके जन्म को अपने
आराम का दिन तो समझते हैं..
वरना तो लोग उनकी जयंती को खुद का मरण ही मानते है
कल छुट्टी मनाकर
खुद को बाकियों से अच्छा महसूस कर रही हूं
गांधी-शास्त्री को कोसकर नहीं बल्कि सराहकर
उनके अगले साल भी आने की दुआ कर रही हूं।।
3 comments:
khoob achcha likhti hain.....
इन दिवसों को कुछ अच्छा करने के संकल्प के रूप में ही मनातेहैं।
आज के परिप्रेक्ष्य में एक कटाक्ष जो शायद हम सब पर लागू होता है...उम्दा भाव |
आभार...
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