तुम्हारे दाएं हाथ के अंगूठे का खुरदुरापन
आज रेशम से भी कोमल होने का एहसास
देता है...
बचपन में तुम्हारे पैरों की फटी बेवाई
और हाथों का रुखापन अक्सर नजर आ जाता था
पर आज,
उसके पीछे की नरमी समझ पा रही हूं
आज समझ आ रहा है कि क्यों तुमने कभी
साड़ी के मेल की चोली नहीं पहनी
क्यों
तुमने कभी रंगों का शौक नहीं पाला
शायद इसीलिए कि तुम मां थी
अपनी हर जरूरत को मेरे शौक के लिए
वार देने वाली
तुम्हारे सिवा और हो भी कौन सकती थी
याद है मुझे
तुम्हारा हर रोज अपनी चाय के हिस्से का दूध बचाना
और शनिवार को ग्रैंड पार्टी में खीर बनाना
इन जाड़े के दिनों में तुम्हारी नर्मी की गर्मी
बहुत याद आ रही है..
वो तुम्हारा स्वेटर बुनना, घड़ी-घड़ी नाप लेने के लिए
मेर पीछे दौड़ना
पर इनमे से अब कुछ भी नहीं
क्योंकि तुम्हारे बाद
इस गुड़िया की सुध कभी किसी ने ली ही नहीं
या शायद मैंने वो जगह कभी किसी को दी ही नहीं
क्योंकि तुम सा होना, सिर्फ तुम तक ही था...
2 comments:
हर कोई माँ नहीं बन सकता ... सुंदर रचना
तुम सा होना केवल तुम तक ही था -भाव विह्वल करती अभिव्यक्ति!
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