आपने बाप की कमाई, बेटे की कमाई, हराम की कमाई और न जाने कितनी-कितनी कमाइयों के बारे में सुन रखा होगा लेकिन क्या कभी कुत्ते की कमाई के बारे में सुना है...?
ये कोई मजाक नहीं है बल्कि आज के समाज में जबकि नौकरी के टोटे पड़े हुए हैं, कमाई का एक नया जरिया है। जहां लोग ना-ना प्रकार के कुत्ते पालते हैं, उनके बच्चे पैदा कराते हैं और फिर उन्हें बेचते हैं।
यकीन मानिए ये कुछ वैसा ही है जैसे आपने नोएडा-दिल्ली में एक बहुमंजिला इमारत बना ली हो और उसके बाद उसे रेंट पर दे दिया हो। या फिर एक-एक करके उसकी एक-एक मंजिल बेच रहे हों। यानि कमाई का कभी न बंद होने वाला धंधा।
मेरे एक जानने वाले हैं जिन्हें कुत्तों से बेहद प्यार है। प्यार नहीं इश्क वाला लव है। तो एक दिन जनाब कुत्ते की तलाश में निकल पड़े। करीब चार-छह घंटे धूल फांकने के बाद पानी पीने के लिए जब एक दुकान पर रुके तो एक आदमी अपना कुत्ता टहलाता हुआ वहां आ पहुंचा। इन जनाब का दिल कुछ वैसे ही जल उठा जैसे दूसरे की बीवी को अपनी वाली से सुंदर देखकर अमूमन पुरुषों का हाल होता है।
खैर दूसरे की बीवी को पुचकारना तो संभव नहीं है लेकिन कुत्ते के मामले में थोड़ी छूट जरूर है। सो दिल को तसल्ली देने के लिए इन साहब ने कुत्ते के थूथुन से थूथुन मिला ली। तमाम उपमाओं से उसे नवाज दिया, इस पर भी दिल नहीं भरा तो उसे गोद में उठा लिया। माफ कीजिएगा ये बताना भूल गई थी ये वो वोडाफोन वाला कुत्ता था। उन्होंन उसकी नस्ल का नाम तो बताया था लेकिन मुझे याद नहीं।
जब प्यार हद से बढ़ने लगा तो कुत्ते के असल मालिक ने दो टूक कह दिया। कुत्ता प्रेमी मालूम पड़ते हो, अपना ही क्यों नहीं ले आते...और अगर अब तक पाला नहीं है तो पाल क्यों नही लेते। बस फिर क्या था मानों किसी ने जलते तवे पर पानी के छींटे मार दिए हों...। इन जनाब से रहा नहीं गया बोल पड़े सबेरे से खोज ही रहा हूं, एक भी अच्छा कुत्ता नहीं मिला...पर आपका कुत्ता काफी अच्छा मालूम पड़ता है। कहां से लिया...। फिर क्या था, शुरू हो गया कुत्तों का व्यापार।
उस आदमी ने बकायदा अपना नंबर और पता दिया और कहा, इसी (कुत्ता) के दो भाई और हैं, चाहे तो ले लो। अंधे को क्या चाहिए दो आंखें की तर्ज पर हमारे ये परिचित उनके पीछे हो लिए। शाम का उनके घर जाना हुआ, बड़े शान से उन्होंने बताया कि घर में एक नया सदस्य आया है, नामकरण होना अभी बाकी है। बड़ी उत्सुकता हुई जाकर देखा तो एक पिल्ला, उसे शहरी जबान में और उसकी नस्ल के आधार पर पग कहते हैं, अपने घर में पड़ा हुआ था। स्पेशली उसके लिए एक डॉग हाउस खरीदा गया था, पोषक आहार खरीदा गया था और दूध के पनारे बहाए जा रहे थे।
जनाब ने एक दिन में कुल 15 हजार उडा दिए थे, 12 हजार कुत्ता बेचने वाले को दिए और बाकी अटर-बटर में। तो बताइए है न कुत्ते कमाई का जरिया...? वैसे ये रिवाज शहरों में ही ज्यादा है, नहीं तो कस्बों और छोटे शहरों में तो जिस तरह मीठाई बांटते हैं उसी तरह पिल्ले जन्मने पर कुछ महीने बाद पिल्ले बांटते हैं।
3 comments:
आपकी यह पोस्ट आज के (१२ जून, २०१३) ब्लॉग बुलेटिन - शहीद रेक्स पर प्रस्तुत की जा रही है | बधाई
अब तो संगठित व्यवसाय है यह -कई नामी गिरामी संभ्रांत जन भी बैक डोर से यह व्यवसाय कर रहे हैं !
:)
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