नाम के अनुरूप भूमिका से ही इस सोच को शुरू कर रही हूं।
बहुत छोटी नहीं थी इसलिए मां के साथ जो भी वक्त बीता, वो आज भी याद है। रोज की जिन्दगी में कोई न कोई, ऐसा वाकया हो ही जाता है जब मैं ये कहती हूं कि मम्मी ऐसा कहा करती थीं। मेरी मम्मी भी ऐसे ही...पर नया कुछ नही है जिसकी दलील दूं।
छोटी नहीं थी, पर सयानी भी नहीं हुई थी, तभी यादों का पिटारा सिमट गया। दुनिया में मुझ जैसे बहुत सारे होंगे, पर सच यही है कि हर एक का दुख अपना है और उसके लिए सबसे ज्यादा है। मेरे लिए भी।
कई गाने इसलिए सुनने छोड़ दिए क्योंकि वो मम्मी की याद दिलाते थे और मैं रोने लगती। लोग पूछते रो क्यों रही हो, तो जवाब देने में झिझक होती, कहीं वो इस मेरी कमजोरी या अपने लिए सहानुभूति बटोरने का जरिया न समझ बैठें।
दूसरों को अपनी मां के हाथ के बने अचार, पराठे, सब्जी की तारीफ करते सुनकर, अपनी कमी का एहसास होता है। उस दिन टैंपो में बैठी थी और आंखें भर आईं। सामने की सीट पर एक मां और बेटी बैठै थे। पहले बेटी बीच में बैठी थी, तभी एक आदमी चढ़ा तो मां ने उसे किनारे बैठने को इशारा किया और खुद बीच में बैठ गई।
नोएडा सेक्टर 55 पर मैं टैंपों में चढ़ी, उन्हें भी सेक्टर 15 जाना था और मुझे भी। मुझे तो सेक्टर 15 ही उतर जाना था और उन्हें शायद लाजपत नगर के लिए मेट्रो से जाना था।
रास्तेभर दोनों बाते करती रहीं। मां के पास एक बैंगनी रंग का बैग का था और लड़की के पास काले रंग का। मां उससे कहती है तू ये काला वाला मुझे दे दे, ये सोबर है और तू ये ले लेना।
वो कहती है नहीं उसे लाल रंग का पर्स चाहिए। लड़की को स्वेटर खरीदना था, वी नेक वाला। तो मां कहती है इतने स्वेटर तो हैं वो अब खराब हो गए क्या। बीच-बीच में दोनों कुछ बातें करके हंसने लग जातीं, कभी मां उसके कान में धीरे से कुछ कहती और फिर लड़की थोड़ी गंभीर होकर उसका जवाब देती।
लगभग आधे घंटे के सफर में दोनों ने न जाने कितनी बातें कर डालीं। घर पर भी कितनी बातें करती होंगीं। बैग के कलर से लेकर बालों के स्टाइल तक रात के खाने से लेकर स्कूल के टिफिन तक। कितनी बों होगी उनके पास।
मां कितने कायदे सिखाती होगी उसे और वो कुछ सुनती होगी और कुछ नहीं। कुछ पर दोनों के बीच टकराव भी होता होगा । जिन बातों को सोचते-सोचते मैंने आधे घंटे का समय रोते-रोते बिता दिया, वो उनके लिए कितना आम है। कितनी बातें होती होंगी दोनों के बीच। न मां को अकेला लगता होगा और न बेटी को।
कभी-कभी तो ऐसा भी होता होगा कि दोनों एक-दूसरे से थककर चुप भी हो जाती होंगी पर इस बात का आश्वासन के साथ कि कहीं कमी लगेगी तो वो है ही।
मैंने बहुत से लोगों को कहते सुना है कि बेटियां मां की और मां बेटियों की सबसे अच्छी सहेली होती है, उन दोनों को देखकर भी यही लगा। पर उस दिन से हर बात, जो भी कर रही हूं, यही सोच रही हूं कि कोई और जो ऐसा ही कर रहा होगा, उसकी मां उसे उस बात के लिए क्या कहती होगी।
2 comments:
बस समझ रही हूँ ,कुछ कह नहीं पाऊँगी !
भावुक होने के सिवा इस पर क्या कहा जाये !
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