उसके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि ही यही है कि उसकी सास अच्छी है और ननद, बहन से भी बढ़कर है। बड़े जेठ जी तो पिता समान हैं पर छोटे वाले, अब बिगड़ गए हैं। कल मॉडल टाउन से राजीव चौक वाली मेट्रो में दो औरतों की बातें सुन रही थी। वैसे तो किसी की बातें सुनना, बुरी बात होती है लेकिन मेट्रो में इतनी भीड़ होती है कि दूसरे की सांस लेने की आवाज भी आप आसानी से सुन लेते हैं।
दोनों बेहद सामान्य परिवार की नजर आ रही थीं। शादीशुदा थीं और शायद किसी कोचिंग में साथ पढ़ती या पढ़ाती होंगी। उनकी बातें इस बात से शुरू हुईं कि आज उठने में देर हो गई।
एक ने कहा मैं रोज 4 बजे उठ जाती हूं पर आज साढे चार हो गए। दूसरी ने खुद की महानता का बखान करते हुए कहा कि वो तो कभी देर से नहीं उठती। इसके पीछे भी एक किस्सा था, उसने बताया कि जब उसकी शादी हुई तो वो रोज 5 बजे उठ जाया करती थी।
वो दिसंबर के दिन थे जब उसकी शादी हुई थी। फिर उसकी सास ने कहा कि इतनी सुबह उठने की जरूरत नहीं सोया करो। उसे लगा सास की बात को अनसुना कर दिया तो वो नाराज हो जाएगी इसलिए वो 6 बजे उठने लगी। लेकिन ये बात उसके छोटे जेठ को अच्छी नहीं लगी और उसने सास से शिकायत कर दी कि आपकी छोटी बहू देर से सोकर उठती है। उसी दिन इन मोहतरमा ने कसम खाई कि अब चाहे जो हो जाए वो 4 बजे ही उठा करेगी। वो दिन था और ये दिन है जब वो हर रोज 4 बजते ही बिस्तर छोड़ देती है।
वहीं दूसरी को भी अपने पक्ष् में तो कुछ बोलना ही था। उसने कहा कि वो हर रोज तो समय पर उठती है पर जिस दिन नहीं जाना होता वो 7 बजे सोकर उइती है। उसके पति उठ जाते हैं, पर उसे नहीं जगाते। ये उसके लिए सौभाग्यशाली होने की गवाही थी। ऐसी ही कितनी बातें उन्होंने की। जिसमें अपनेजीवन के प्रति प्यार और सम्मान की कोई भावना ही नहीं थी। वो बस इसलिए खुश थीं कि उनकी सास उन्हें इंसान ही समझती है। ननद कटाक्ष नहीं करती और जेठ वहशी नहीं है। अवकाश वाले दिन वो दो घंटे ज्यादा सो लेती हैं और उनके परमेश्वर उन्हें पूजा करने के लिए उठाते नहीं हैं।
दोनों की बातें सुनकर अजीब लग रहा था कि इन्होंने ये कैसी सोच पाल रखी है जहां वो खुद को इसलिए भाग्यशाली मानती हैं कि क्योंकि उनकी सास अच्छी है। पता नहीं, पर ऐसा होना दो बातें स्पष्ट करता है। एक तो ये कि दुनिया की ज्यादातर औरतें आज भी अपनी खुशी और सम्मान, दूसरों में ही खोजती हैं और दूसरा ये कि सास का अच्छा होना आज भी किसी आश्चर्य से कम नहीं।
4 comments:
सत्य है कि बहुत सी स्त्रियों के पास आज भी अपने बारे में कहने के लिए कुछ नहीं होता ! सामान्य बातचीत से गहन वैचारिक पोस्ट निकाली आपने !
“दोनों की बातें सुनकर अजीब लग रहा था कि इन्होंने ये कैसी सोच पाल रखी है जहां वो खुद को इसलिए भाग्यशाली मानती हैं कि क्योंकि उनकी सास अच्छी है।”
इसमें अजीब क्या है? यह तो आज भी एक सच्चाई है कि सामान्य तौर पर सास और ननद का मतलब ही ऐसे रिश्ते से होता है जो आपको सुख और आराम कम देता है और चुनौतियाँ अधिक। ऐसे में यदि किसी को सकारात्मक सोच वाली सास और ननद मिल जाय तो सौभाग्य ही मानिए।
इस नये जमाने में भी लड़कियाँ अपना पति तो देखभाल कर चुन सकती हैं लेकिन सास और ननद तो ‘बाई डिफाल्ट’ ही मिलती हैं यानि भाग्य भरोसे। फिर भी उनके साथ निर्वाह करना ही होता है। आज भी शिक्षा और जागरूकता के मामले में भारतीय स्त्रियों को अभी बहुत आगे जाना शेष है; और पुरुषो को भी। नयी पीढ़ी की सासें अब जरूर बेहतर होने लगी हैं।
आप यूँ ही जागरूकता और अच्छे मूल्यों की अलख जगाती रहिए। हार्दिक शुभकामनाएँ।
आपके लेख में यह स्पष्ट हो रहा है कि आज भी एक स्त्री की खुशियां और उसका मान-सम्मान दूसरे व्यक्ति पर निर्भर करता है, चाहे वह उसकी सास हो या परिवार का कोई अन्य सदस्य।
और सच्ची बात यह है कि अधिकर ऐसा ही होता है!
Jharkhand mein ek mahila ne saas aur pati ke prataran se mukti pane ke liye, dahej ki kamee ko poora karne ke liye apni kidney apne pati ko donate kar di.
Jab prataran phir bhi samapt naheen hua, jab pyaar phir bhi naheen mila, to apne aap ko jala kar atmahatya kar li. [link- Jharkhand woman gives kidney to husband as dowry, kills self after six months]
Mahilaon ko yeh sikhaya hi jaata ki apnee khushi ke bare mein kabhi naa soche, aur hamesha doosron par mohtaj rahen.
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