देश को स्वतन्त्र हुए कई साल हो गए। इतने समय मे हमनें देश की भलाई के कितने काम किये, इसपर अब प्रत्येक देशवासी को गम्भीरता से विचार करना चाहिए। यही प्रत्येक देशवासी का मुख्य काम है। इसी पर हमारी सफलता और महत्ता र्निभर करती है।
स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद का सबसे बड़ा काम है-नये भारत का निर्माण करना। असली भारत गांवों में ही है। शहरों की संख्या यहां कम है। किन्तु हम शहरों औार गांवों- दोनों को देखें।
शहरों में म्युनिसिपलिटी के सदस्य और पदाधिकारी रहते हैं। उन्होंने अपने नगर के नव-निर्माण के लिए कौन-सा काम किया है? क्या नगरों की सफाई का, पहले की अपेक्षा, कोई नया प्रबन्ध्ा हुआ है? क्या नागरिकों में सफाई रखने की प्रवृत्ति या प्रेरणा जगी है? क्या नागरिकों की स्वास्थ्य रक्षा या स्वास्थ्य वृद्धि की कोई नयी व्यवस्था की गर्इ है? क्या सदस्यों और पदाधिकारियों में पहले से कुछ अधिक कार्यतत्परता आ सकी है? क्या सड़कों, नालियों और कूड़ाखानों की सफाई पर कुछ ध्यान दिया गया है? क्या हम अपने नगरों को ऐसा कुछ बना सके हैं कि स्वतंत्र देशों के यात्री उन्हें देखकर हमारी कार्यक्षमता का अनुमान कर सकें? इन आवश्यक प्रश्नों के सही-सही उत्तर दे लेने के बाद ही हम अपने स्वतंत्रता-दिवस के उत्सव में उत्साह प्रदर्शित करने के सच्चे अधिकारी सिद्ध होंगे। नहीं तो उत्सव नकली होगा।
देश के पदाधिकारी भी टुक ईमानदारी से सोचें कि चुनाव में वोट मांगने के बाद वे कितनी बार गांवों की दशा देखने के लिए उन सड़कों से गुजर सके हैं जिनकी दुर्गति आजादी मिलने पर भी देखने ही योग्य है। हमारे अखबारों के सम्पादक इस बात के सच्चे गवाह है कि उनके पास सड़को की दुर्दशा की कितनी ही शिकायतें रोज आती है। सड़को की कमी और खराबी से ही गांवों की उपज बाजारों तक नहीं पहुंच पाती, जिससे गांवों की माली हालत नहीं सुधरती। महामारियों में गांव वाले कीड़े की मौत मरते है और उनके मवेशी भी उसी दशा को प्राप्त होते हैं। क्या उक्त पदाधिकारियों के ध्यान में ये बातें आई है चुनाव के दौरे के बाद क्या वे कभी वहां झांकने भी गए हैं? हमारे ग्रामीणों में जो निराशा छा रही है, वह हमारी राष्ट्रीय प्रगति के लिए बहुत घातक सिद्ध होगी; क्योंकि हमारे गांव ही हमारे राष्ट्र की रीढ़ है।
हमारे कांग्रेसी भाई आजतक गांवों को अपना वास्तविक कार्यक्षेत्र नहीं बना सके हैं। जो लोग स्वतंत्रता को प्राप्त करने का दावा करते हैं, वे ही स्वतंत्रता का स्वाद भी चख रहे हैं। मगर जबतक जनता को स्वतंत्रता का स्वाद या प्रसाद नहीं चखाया जाएगा तब तक यह स्वतंत्रता-स्मारक पवित्र दिवस हर साल प्रदर्शनमात्र का ही अधार बना रहेगा।
साभार; शिवपूजन सहाय ( शिवपूजन-रचनावली, दूसरा खण्ड. पृष्ठ सं. 190-191)
ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो अगस्त 1948 में शिवपूजन सहाय ने किये थे। लेकिन पूरे लेख को पढ़कर कहीं से भी ये नहीं लगता कि ये 63 साल पहले पूछे गए सवालात हैं और आजादी के ठीक एक साल बाद के भारत की तस्वीर।
शिवपूजन सहाय की रचना ‘अन्नपूर्णा के मंदिर में’ कई ऐसे तथ्य है जिन्हें पढ़कर ऐसा लगता है कि ये 1948 नहीं बल्कि वर्तमान की तस्वीर है। जो समस्याएं आजादी के एक साल बाद थीं वही आज भी हैं या कुछ ज्यादा ही। लेकिन उस समय सन्तोष इस बात था कि लक्ष्य बड़ा है तो उसे पूरा करने में वक्त लगेगा लेकिन आजादी के इन 64 सालों बाद भी हम वहीं खड़े हैं। 64 साल, किसी देश के लिए कम नहीं होते लेकिन भारत का ये दुर्भाग्य ही है विश्वगुरू कहे जाने वाले इस देश के पास अब कोई मार्गदर्शक नहीं।
आज भी देश का एक बहुत बड़ा भाग अपनी मौलिक जरूरतों को पूरा नहीं कर पाता। दो वक्त की सूखी रोटी के लिए उसे खून को पसीने की तरह बहाना पड़ता है। आज भी लाल बत्ती पर गाड़ी रूकते ही पांच-छह साल के बच्चे शाइनिंग इंडिया का लॉकेट बेचने टूट पड़ते हैं, हालांकि उनमें से ज्यादातर को इसका मतलब तक नहीं पता होता, और हो भी कैसे... आंख खेलते ही मां को गुलामी करते देखते हैं, बाप को खटते और हाथ-पैर चलने लगे तो खुद भी गुलामी की फील्ड में आ जाते हैं। शाइन करने की उम्र में लोगों की गाड़ियां और जूते चमकाने वाले इन बच्चों के लिए शायद ही आज कोई खास दिन हो।
देश के विकास के लिए तरह-तरह की योजनाएं हैं लेकिन आज भी पीने को पानी नहीं हैं, चलने के लिए सड़कें नहीं हैं, पढ़ने के लिए स्कूल नहीं हैं और इलाज के लिए अस्पताल नहीं हैं। केन्द्र में जिन योजनाओं के लिए फंड पास होता है वो विभाग के मंत्री से चलता हुआ क्लर्क की जेब तक आकर ही खत्म हो जाता है और इसी भ्रष्टाचार का परिणाम है कि 1948 के अस्त-व्यस्त भारत में और आज के भारत में कोई ज्यादा फर्क नजर नहीं आता, बल्कि वर्तमान हालात तो और ज्यादा दयनीय हो चुके हैं। अगर इस तरह की आजादी से आप खुश है तो निश्चित रूप से इस जश्न का हिस्सा बनें और अगर कहीं भी लगे कि इस देश को उन तमाम गुलामियों से आजाद कराना है तो सोचें की आप अपने स्तर पर इस देश के लिए क्या कर सकते हैं।
जय हिन्द !
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