बैनर : पेन इंडिया प्रा. लि., वायकॉम 18 मोशन पिक्चर्स, बाउंडस्क्रिप्ट मोशन पिक्चर्स प्रा. लि.
निर्माता : सुजॉय घोष, कुशल गाडा
निर्देशक : सुजॉय घोष
संगीत : विशाल-शेखर
कलाकार : विद्या बालन, परमब्रत चट्टोपाध्याय, नवाजुद्दीन सिद्दकी
डर्टी पिक्चर में सिल्क का एक डायलॉग है कि फिल्में सिर्फ तीन वजहों से चलती हैं, इंटरटेनमेंट-इंटरटेनमेंट और इंटरटेनमेंट। और वाकई सच्चाई भी यही है। लेकिन खास बात ये है कि इंटरटेनमेंट की नगरी बॉलीवुड में अब तक इंटरटेनमेंट का दायरा बेहद सीमित था। जहां एक हीरो है, हीरोइन है, विलेन है और किसी पुरानी हिट फिल्म से मिलती-जुलती, वही चालू स्टोरी। पर धीरे-धीरे ही सही ये दायरा अब अपने पैर पसार रहा है और इसका बेहतरीन उदाहरण है फिल्म कहानी और विद्या की बेहतरीन अदाकारी। अपने दम पर एक फिल्म चलाना अब तक बपौती की श्रेणी में ही आता था लेकिन पा, इश्किीया, डर्टी पिक्च र और अब कहानी में उन्हें देखकर लगता है कि दर्शक भी अब बेहतरी को प्राथमिकता देते हैं न कि र्सिफ चेहरे को। कहानी एक सस्पेंस थ्रिलर है। फिल्मक को मानवीय संवेदनाओं के साथ थ्रिलर के रूप में पेश किया है। बगैर हीरो के बनी कहानी एक थ्रिलर है, लेकिन बॉलीवुड की तमाम थ्रिलर्स से हटकर। यहां न फर्राटे से भागती कारें हैं और न तो बेहद भव्य, खान-पान-पहनावा। न तो बार में नाचती गोरी हसीनाएं हैं और न ही बेहिसाब गोलियों की धांय-धांय। कहानी हीरोइन के इर्दगिर्द घूमती है जो कि प्रेग्नेंट हैं। उसके साथ एक सामान्य-सा पुलिस ऑफिसर है और सिटी ऑफ जॉय कोलकाता शहर भी इस फिल्म में अहम भूमिका निभाता है। संकरी गलियां, मेट्रो, खस्ताहाल ट्रॉम, पीले रंग की टेक्सियां, अस्त-व्यस्त ट्रेफिक और दुर्गा पूजा के लिए सजा हुआ कोलकाता कहानी में एक किरदार की तरह है। विद्या बागची लंदन से कोलकाता अपने पति अर्णब बागची को ढूंढने के लिए आई है जो दो महीनों से लापता है। वह पुलिस स्टेशन जाती है। उस ऑफिस में जाती है जहां अर्णब अपने प्रोजेक्ट के लिए आया था। उस होटल में जाती हैं जहां वह रूका हुआ था, लेकिन उसका कुछ पता नहीं चलता। हर तरफ से बस एक ही जवाब मिलता हैं कि इस नाम का शख्स कभी भी लंदन से कोलकाता आया ही नहीं। विद्या को कुछ सुराग मिलते हैं, जिनके सहारे वह आगे बढ़ती हैं। इस काम में उसकी मदद करता है राना। जोकि की एक पुलिस इंसपेक्टर है। किस तरह से विद्या का सफर राना के सहारे आगे बढ़ता है यह रोचक तरीके से दिखाया गया है। लेकिन जब रहस्य से परदा उठता है तो आप चौंक जाते हैं लेकिन अंत बताने की चीज नहीं है, देखने की चीज है। जबरदस्त एंड कि...फिल्म खत्म होने के पांच मिनट पहले भी आप अंत ऐसा होगा ये अंदाजा नहीं लगा सकते। विद्या के अलावा फिल्म का सबसे मजबूत पक्ष इसकी कहानी और स्क्रीनप्ले है। हालांकि कुछ बातें थोड़ी अविश्वसनीय हैं, लेकिन प्रस्तुतिकरण वास्तविकता के बेहद करीब है। विद्या के अलावा फिल्म में कोई नाम बहुत बड़ा नहीं है। परमब्रत चट्टोपाध्याय और नवाजुद्दीन सिद्दकी का अभिनय बेहतरीन है। कहानी ऐसी फिल्म है जो सिनेमा हॉल से निकलने के बाद भी आपके साथ मौजूद रहती है और आप खुद को जासूस की तरह ट्रीट करते हुए घर पहुंचते हैं।
फिल्म कहीं से भी उबाउ नहीं लगती है। इसके अलावा इस फिल्म का आकर्षण बिग बी अमिताभ बच्चन की आवाज में फिल्माया एक गाना एकला चलो... सचमुच सुनने लायक है। रूटीन फिल्मों से हटकर कुछ इंटेलीजेंट देखने का शौक रखते हों तो कहानी जरूर देखें।
6 comments:
अभी तक जितना सुना, अच्छा ही सुना इस फिल्म के बारे में.
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है।
चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं....
आपकी एक टिप्पिणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......
NICE
रोचक सही समीक्षा ...
शुभकामनायें ....!
सचुमुच अच्छी फिल्म....
इस “मस्ट सी” फ़िल्म में विद्या बालन का अभिनय कम से कम उन आलोचकों का मुंह ज़रूर बंद कर देगा जो उनके श्रेष्ठ अभिनय के लिए मिले राष्ट्रीय पुरस्कार पर उंगली उठा रहे थे।
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