अपने देश में शादी
करना, करवाना और शादी में शामिल होना उन कुछएक गिनेचुने कामों में से है जिसे
लोग बड़े चाव से करते हैं। नौकरी मिलते ही जहां मां-बाप लड़के के लिए एक सुकन्या
तलाशने लगते हैं....वहीं लड़कियों का राजकुमार ग्रेजुएशन पूरा होते-होते घोड़े दौड़ाने
लगता है। पर शादी करवाना भी एक नशा है..जिसके शिकार ज्यादातर शादियों में जाते
ही हैं इसलिए कि वहां जाकर कुंवारे लड़के और कुंवारी लड़की की लिस्ट बना सकें।
फिर यहां की डिलीवरी वहां और वहां का माल यहां। लेकिन सबसे दिलचस्प होता है
शादी में शामिल होना।
आमतौर पर शादी के
कार्ड शादी के दिन से चार-पांच दिन पहले ही सबके घर पहुंचा दिए जाते हैं। जिस
दिन से कार्ड आया नहीं कि तैयारियां शुरू...। अच्छा व्यस्तता सबसे अधिक महिला
वर्ग के लिए ही होती है...आलमारी से साड़ियों का स्टॉक निकालना, साड़ी सेलेक्ट
करना,ज्वैलरी तय करना और पांच पड़ोसियों के घर जाकर कुछ इस तरह बखान करना कि बिन
उनके गए तो शादी पूरी ही नहीं हो सकती। खैर इस उतावलेपन का होना लाजमी भी है..शादी-विवाह
उनके लिए किसी रैंप से कम नहीं जहां वे अपनी साड़ियों, गहनों और पति का दिखावा
करती हैं। दूसरे कारण ये भी है कि जेल से आजादी किसे पसंद नहीं आती। हर रोज किचन
में पाक कला का प्रदर्शन कर सबकी वाहवाही का इंतजार करने के बीच में ये एक दिन की
आजादी किसे नहीं सुहाएगी। करना, करवाना और जाना तो हो गया लेकिन लगभग हर शादी-विवाह
में चीजें और बातें एक सी होती हैं.. कुछ ऐसे लोग जो अपने घर पर भले सूखी रोटी पर
तेल लगाकर खाते हों, शादी के छप्पन भोग को कुछ कमी रह गई कहने से बाज नहीं
आते। भले थाली में एक चावल के दाने भर की भी जगह न बची हो लेकिन थाली रखते वक्त
ये जरूर कहेंगे कि यार खाना बेदम था,पेट नहीं भरा। आइस्क्रीम, कॉफी, चाउमिन और
कुछ ऐसे ही नए जमाने के पकवानों और व्यंजनों के आगे झुंड में कुछ तरह भिनभिनाना
जैसे मधुमक्खी का छत्ता। इतने भूखे हो जाते हैं कि तैश में डीलिवरी भी खुद ही
होने लगती है और मकसद भी तो बस यही होता है कि एक लिफाफे में 51 रुपए डालकर न्यौता
करो और 500 रुपए से कम खाना खाए घर मत लौटो, भले घर पहुंचकर पुदीन हरा लेना पड़
जाए। यूं तो खना खाने के बाद रुकते ही इक्का-दुक्का हैं लेकिन जो रुकते हैं वो भी
निंदा रस का मजा लेने के लिए। शादी के दिन शायद ही कोई दुल्हन होगी जो बुरी लगती
हो लेकिन घरवालों को छोड़कर पीछे बैठी पंक्ति में किसी को दुल्हन छोटी, किसी
को काली तो किसी को दुल्हे की टक्कर की नहीं लगती। लेकिन यहां भी कैटेगरी
है..दुल्हन पक्ष का न्यौता है तो दूल्हे की बुराई करो और दूल्हे की ओर से हैं
तो दुल्हन की। शराब के नशे में सरस्वती वंदना पर भी भांगड़ा करने वालों की एक
बड़ी तादात होती है..जो हर औरत को भाभी बनाने से गुरेज नहीं करते। पर इन तमाम
बातों के होने के बावजूद भारत में शादी सबसे बड़ा त्यौहार है....।
10 comments:
हा हा , एकदम सटीक , आज हमको भी शादी में जाना है , वरपक्ष की तरफ से , खाने के बाद निंदा रस का भी पान करना है . लेकिन तुमने बिचौलिया (गाजीपुर में अगुआ बोला जाता है ) के रोल पर प्रकाश नहीं डाला . इस सबसे बड़े त्यौहार को मनाने का महत्वपूर्ण कारक .
बिलकुल सही विश्लेषण ।।
वाकेई में ये पहलू बड़े रोचक हैं।
शादियां अधिकतर, सचमुच भारतीय (एक ही ढर्रे की) होने लगी हैं, टेलीविजन प्रशिक्षित.
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है।
चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं....
आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......
सही कहा..:D
kalamdaan.blogspot.in
sahi kaha....
सच है की शादी एक बड़ा त्यौहार है .. वैसे भी आज दूल्हे और दुल्हन का नया जनम होता है ... नए रूप में ... अच्छा लिखा है आपने ...
बिल्कुल सही विश्लेषण किया है आपने ...
कुछ भी हो भारतीय शादियों का माहौल निराला ही होता है.
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