Monday, October 29, 2012

तुम्‍हारे नहीं होने का दर्द...

तुम्‍हारे नहीं होने का दर्द
तब ज्‍यादा महसूस होता है
जब बाकी लड़कियां मुझे
अच्‍छी लड़की होने का मतलब समझाती हैं
जब वो मेरी बेढब सी चाल को लेकर
मजाक उड़ाती हैं..
और उस वक्‍त
जब घर से लौटकर वो तरह-तरह की
खाने की चीजों को करीने से सजाती हैं..
पर तब,
शायद सबसे ज्‍यादा
जब वो कहती हैं
तुम भी खा लेना
"मेरी मां" ने तुम्‍हारे लिए भी भेजा है..
तुम्‍हे भूलने के लिए
हर रोज एक नई आदत बना रही हूं
पर उस आदत को कैसे दूर करूं
जो तुम्‍हारे उदर से सीखी है
शायद यही र्द की वजह है..
क्‍योंकि तुम बहुत याद आ रही हो।।

5 comments:

रविकर said...

बढ़िया , शुभकामनायें ||

Dr. sandhya tiwari said...

ma ke udar se jo sikha vo jivanpryant saath rahta hai aur usme yadi kamiyan hai to vahi to hamari pahchan hai, bhale hi auron ko pasand na aaye par apni pahchan ko khona nahi chahiye varna phir vo nahi mil payega .............aapne mujhe bhi apni ma ki yad dila di

मनोज कुमार said...

दिल कॊ छूती रचना।

Yashwant R. B. Mathur said...

तुम्‍हे भूलने के लिए
हर रोज एक नई आदत बना रही हूं
पर उस आदत को कैसे दूर करूं
जो तुम्‍हारे उदर से सीखी है

बेहतरीन पंक्तियाँ!


सादर

Arvind Mishra said...

कैसा अमूर्त सा आत्मकथ्य :-)

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